Friday, March 21, 2014

!! आईने में उतर रही है !!

कैसी तस्वीर ये आईने में उतर रही है
कलयुग के नाम पे इंसानियत जल रही है

जिन्दा लोगो में मरे हुए देखे ईमान जबसे
ये कमी मुझे तबसे हर रोज़ खल रही है
 
बेहद मिठास रखी हुई है लबो पे आदमी ने
भीतर मगर नफरत कि आरज़ू उबल रही है

किसपे करे यकीन सोचने में इक उम्र बीती
मोहोबत तक हर शख्स को आयदिन छल रही है

हर नाता सिका हुआ है खुदगर्जी कि धूप से
बेटिया भी आज औरत कि कोख में मर रही है

पैसा हुआ है जबसे दीन-धर्मं इन इंसानो का
सिक्के के इशारो पे तबसे आबरू उतर रही है

ये कौन सा व्यापार है मुल्क से सरहद पार है
बच्चे से औरत तक कि तस्करी बेखौफ चल रही है

हर आलम में अब घुटन ही घुटन रमा हुआ है
'श्लोक' कि कलम भी दर्द से टूट कर बिखर रही है


Written By : परी ऍम "श्लोक"

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