Wednesday, March 19, 2014

"अपराध"


अपराध घटता है
हमारे आस-पास ही
औऱ बढ़ता ही जाता है
जानलेवा गैस कि तरह..
कभी हत्या, उत्पीड़न, रेप,
दंगा, चोरी, ठगी औऱ
ऐसे कई घृणित अपराध
जिनसे नज़र चुरा
निकल पड़ते हैं हम
हमें क्या लेना-देना सोच कर
समाचार देख कर बताते हैं
पूरा माज़रा घर में कि ये घटना
मेरे सामने ही हुई थी..
पर कौन टांग अड़ाए
दूसरो कि फटी में..
औऱ फिर कोशिश ही नहीं करते
जागरूक होने कि
या किसी को करने कि
हिम्मत नहीं करते
गलत का विरोध करने कि
मानवता को डर के
साये में सुला देते हैं
निकल पड़ते हैं
खुद को आम इंसान समझ के
मूल्यो को ताक पर रख के
क्यूँ भूल जाते हैं ??
अपराध ओज़ोन परत
चीर करके कभी भी
ग्रसित कर सकती हैं
हमें उसी तकलीफ से
जिसकी खबर कुछ दिन पहले हमने
अखबार में सुबह कि चाय के वक़्त पढ़ी थी!!


रचनाकार : परी ऍम श्लोक

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