Monday, May 12, 2014

"चेहरे के पीछे का सच"

तुम क्या कह रहे थे मुझसे
उस बंद कमरे कि चारदीवारी में
मेरे कानो में आकर
वो जो तुम कहना चाहते थे
या वो जो मैं सुनना चाहती थी
तुम मेरे हालातो का जायज़ा ले
उसका लाभ उठाने कि कोशिश कर रहे थे
या वास्तविकता थी उसमे
जो तुम मेरे सामने प्रस्तुत कर रहे थे

ये नकाब के ऊपर का चेहरा है
या सच में तुम ऐसे ही हो
मुझमे ऐतबार करने का ताब नहीं
क्यूंकि समय ने मुझे
हैरतो में डाला है अक्सर

देखो ! मैं सावधान हूँ
मैंने देखें हैं आंधियो में सपनो के घर ढहते
बहुत बरसे हैं घन आँखों से
परन्तु अब नही
किसी भी भावना को हवा देने से पहले
मुझे तफ्तीश करने दो

तुम्हारे शब्द स्नेह से ओत-प्रोत हैं
या
किसी फायदे कि चेष्टा ने
तुम्हारे व्यवहार को
इतना नेक और अच्छा बना दिया है !!!

रचनाकार: परी ऍम 'श्लोक'

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