कोई कह न दे लव्ज़ों पे विराम रखूं
जस्बात कहूँ या इसको बेजुबान रखूं ?
परिंदा जो तड़प रहा है दिल के पिंजरे में
इसे आसमा दे दूँ या फिर लगाम रखूं ?
कभी सोचती हूँ कि तुझसे भी बगावत करलूं
फिर ख्याल आता है कि पास पूरा जहान रखूं
जब परेशां करती है मुझे हालत गैरो कि
तब सोचती हूँ किस कोने में ये इत्मीनान रखूं ?
वो मेरा ज़मीर है जो मुझे सोने नहीं देता
वरना कौन चाहता है तकलीफ तमाम रखूं ?
जो मेरा है मुझे लौटा दे जो तेरा है उसे लेजा
अपनी आदत नही सेत में कोई सामान रखूं
जो लिखा था तुझे सुनाने को वो कह रही हूँ 'श्लोक'
क्यूँ कागजो में समेट कर मैं कोई पैगाम रखूं
हमने जीना शान से सीखा है मरने का गम नही
फिर अपनी जिंदगी में तेरा नाम क्यूँ गुमनाम रखूं ?
ये आंसू हैं कि बोतल में समा कर भी ज्यादा है
मै-कशी में इससे कीमती कौन सा जाम रखूं ?
ग़ज़लकार : परी ऍम 'श्लोक'
जस्बात कहूँ या इसको बेजुबान रखूं ?
परिंदा जो तड़प रहा है दिल के पिंजरे में
इसे आसमा दे दूँ या फिर लगाम रखूं ?
कभी सोचती हूँ कि तुझसे भी बगावत करलूं
फिर ख्याल आता है कि पास पूरा जहान रखूं
जब परेशां करती है मुझे हालत गैरो कि
तब सोचती हूँ किस कोने में ये इत्मीनान रखूं ?
वो मेरा ज़मीर है जो मुझे सोने नहीं देता
वरना कौन चाहता है तकलीफ तमाम रखूं ?
जो मेरा है मुझे लौटा दे जो तेरा है उसे लेजा
अपनी आदत नही सेत में कोई सामान रखूं
जो लिखा था तुझे सुनाने को वो कह रही हूँ 'श्लोक'
क्यूँ कागजो में समेट कर मैं कोई पैगाम रखूं
हमने जीना शान से सीखा है मरने का गम नही
फिर अपनी जिंदगी में तेरा नाम क्यूँ गुमनाम रखूं ?
ये आंसू हैं कि बोतल में समा कर भी ज्यादा है
मै-कशी में इससे कीमती कौन सा जाम रखूं ?
ग़ज़लकार : परी ऍम 'श्लोक'
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