Thursday, May 22, 2014

@ कुछ पंक्तियाँ शुरूआती दौर की जब मैं परवीन मौर्या के नाम से लिखती थी @


एक सदमा है जो आ लगा है सीने में
एक कहानी है जो मुझसे बयां नही होती
तू वो दर्दी-हकीकत है जिसे छिपाया करती हूँ मुस्कुराहटों के तले
वो तेरी याद है जो मुझसे जुदा नहीं होती
मैंने सुना था इश्क़ इबादत है कोई सज़ा नही होती
भूल गयी थी की दिल के टूटने पे भी आवाज़ नही होती (1)


 आज भी तेरे नाम से उम्मीद जवां होती है
मेरी रातें तेरी यादो पे फ़ना होती हैं
तू दिल में हैं पर लकीरो में नहीं कहीं
क्या किस्मत इसकदर भी बेवफा होती है (2)

तुझे देखूं तेरा दीदार करूँ
तुझे सोचूं तुझे मैं प्यार करूँ
दिल की दीवारो पे लिखूं तेरा नाम
अपनी धड़कनो पे एक एहसान करूँ
खुशियाँ बटोर लाऊँ पूरी कायनात से
गम के परिंदो को चंद लम्हों का मेहमान करूँ (3)


मुझसे इज़्ज़ज़त मांगी थी खुशियो ने
मेरे आँगन में आशियाँ बनाने की
फिर हमने भी हामी भरके इक एहसान कर दिया (4)




(ग़ज़ल..)
सूरज से आँख मिलाने का दिल करता है
कभी चाँद पर चले जाने का दिल करता है
ज़मीं की रौनके देख कभी दिल इसका तलबगार होता है
कभी पंख लगा आसमां में उड़ जाने का दिल करता है
आँख से आंसू चल देते हैं सफर पे तो उल्फत
कभी बेपनाह खुशियो में झूम जाने का दिल करता है
सवेरो के साथ चलने का मंज़िल तक
कभी शाम बन रात में ढल जाने का दिल करता है
नफरत की आग में झुलस के राख हो जातें हैं
कभी प्यार की बारिश में भीग जाने का दिल करता है
कभी अंबानी सवालो के सवालो से सवाल करती हूँ
कभी जिंदगी की पहेलिओ को सुलझाने का दिल करता है
अब ये जान लो की हसरते आगे निकल गयी हैं
क्या थी, क्या हूँ सब भूल तेरे आग़ोश में सिमट जाने का दिल करता है (5)




आई हैं बहारे कि मुद्दतो हुई
अब मुरझाई जिंदगी के गुलिस्तां महकेंगे (6)


बोलो ! क्या हो अगर आ जाए यादो में खटास
मर जाए रंग रूप उड़ जाए मिठास ?  (7)


शीतल लहर परदेस क्या गयी
चाँद ने कोहरो का घूँघट कर लिया (Sardi ki ek chandani raat me) (8)



दिल की वीरानियों में भी साया जिसका मौजूद रक्खा
वो तुम हो जो मुझे मुकम्मल करने आये हो   (9)


अपराध तये करते हैं सज़ा के नुमाइंदे
मेरे मुल्क का कानून सबूतो कि बैसाखियों पे चलता है
जुर्म कि चिंगारियों को रोकने का बूता नहीं इनमे
आग बुझाने चलते हैं जब सारा शहर जलता है (10)


वही बातें वही लहज़ा वही चाहत वही अदा
तुम वही हो जिसे बरसो मैंने अपनी सोच से बनाया है (11)





ये धुप छाँव सी जिंदगी
उजड़े गाँव सी जिंदगी
लड़खड़ाते पाँव सी जिंदगी
बिन वजहों की जिंदगी
कल्पनाओ की जिंदगी
अब मुकम्मल होने लगी है
मेरी तमन्नाओ की जिंदगी (12)


ए हसरतो अब तुम लौट जाओ
जहाँ पूरी हो सको उस जहान में
बिन मंज़िल का अँधेरा रास्ता हूँ मैं
मेरे साथ चलोगी तो भटक जाओगी (13)


कुछ दिल को ज्यादा भाये तो बचा के रखना
अक्सर ऐसे अज़ीज़ो को ज़माने की नज़र लूट जाती है (14)


मेरे ज़स्बातो को छूकर सारे अरमान जगा देते हो
तुम जब भी मिलते हो जीने की वजह देते हो (15)


मुश्किलात ज़स्बातो ने कुछ इसकदर पैदा किया
हमने तुझे पाने की आरज़ू में दिल का सौदा किया !! (16)


परी ऍम 'श्लोक'
 

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