Monday, May 5, 2014

"कह लेने दो जस्बात मुझे"

हाँ! वो तुम ही हो
जिसकी जुस्तजू मैंने
बरसो बंद कमरे में पाली थी 
जिसके लिए बटोर के रक्खे थे
तमाम जस्बात अपने
यही सोच के आगे बढ़ी थी मैं
कदम-दर-कदम....
तुम्हारे साथ इम्तिहां कि
हर गली से गुजरी थी मैं
कि बस वो तुम ही हो...
 
तुम्हारे चहरे कि
चमक ने खींच लिया था मुझे
या फिर तुम्हारी कशिश से भरी
रेशमी बातो ने
उलझा लिया था मुझे
बहला कर बिठा लिया था
फिर यूँ खाइशो ने कहा कि
तुम्हे देखती रहूँ  
तुम्हे ही सुनती रहूँ मैं.. अक्सर

फ़क़त
"इसकदर तुम्हारा जादू मेरे नशेमन पे छा गया था
जिस तरफ नज़र फेरी बस तुम्हारा साया था"

जब तुम
मेरे दिल के चबूतरे पर आकर बैठे
तब बेसुध धड़कनो ने अचानक
हिलना-डुलना शुरू कर दिया था
तुम्हारी गर्म साँसों कि हवा ने
बरसो से सूखे
हसरतो के गुल खिला दिए थे
तुम्हारे सहारे ने मुझे उठा दिया
आसमान की बुलंदियों तक
तुमसे मिलकर मैंने जाना
वो इक बात
जो तुम्हे कह देने का मन है आज
सच.....
तुम्हारे बिना मैं महरूम रह जाती
अपने आप से...अपने ख्वाब से...
उस एहसास से....जिसे अगर तुम
मेरी जिंदगी में सिन्दूर की तरह
रंग न बिखेरते तो
ये तस्वीर...........शायद !
 कभी पूरी नहीं होती !!


रचनाकार: परी ऍम 'श्लोक'
 

2 comments:

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