Thursday, May 1, 2014

!! मुझे नया अफ़साना लिखना है !!

आज डरती हूँ मैं इस चाँद से भी
रोशनी झाड़ कर अँधेरा बटोरती हूँ

जिसने मुझे न जीने दिया न मरने
आज मैं वो सारी कसमे तोड़ती हूँ

तू आये न या ना आये अब फर्क नहीं
तुझसे उलझी उम्मीद छोड़ती हूँ 

जा तुझको मुबारक ये तेरा सकून
मैं अपनी तरफ तन्हाईयाँ मोड़ती हूँ

लेकिन.....
ये मैं वादा नहीं करती तुमसे
कि तुम्हे भूल पाउंगी मैं कभी
यक़ीनन खिलौने याद के
तोड़ के फेंक दूंगी मैं कहीं

ये बच्चा जब दिल का रोयेगा
आंसुओ से इसे बहला दूंगी
मगर...
तेरी ओर लौटने की आरज़ू
अब पैदा न होगी मुझमे कभी

ऐसा नहीं की मुझे दर्द नहीं
मगर ये भी क्या बिगाड़ेगा
जिंदगी मुझे कब है प्यारी
जो अब ये टीस मुझको मारेगा

चलो...
अब ये पन्ना मैं पलटती हूँ
मुझे नया अफ़साना लिखना है
न हो रुबाइयों में जिक्र तेरा
मुझे हर हर्फ़ ऐसा चुनना है !!


ग़ज़लकार : परी ऍम 'श्लोक'
 

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