Saturday, May 24, 2014

!! मासूमियत से तजुर्बे तक....!!


मिलता नहीं मुझको कहीं पर मेरा वो अक्स
शायद! वक़्त की गलियो में कहीं खो गया होगा

मेरा तस्सवुर भटकता है जिसकी तलाश में आज भी
वो वज़ूद कोई खामोश अफ़साना हो गया होगा

हाँ! तड़पा बहुत होगा मुझे न पाकर अपने पास
फिर उम्र के छाँवों में जाकर सो गया होगा

चलता हुआ थका होगा...ठोकर भी लगी होगी
फिर हालातो की हवाओ के संग हो गया होगा

सपने टूटे होंगे वो जो...बेहद अज़ीज़ होंगे
कोई दिल में शूल हज़ारो चुभो गया होगा

बरसा होगा फूट कर तन्हाईयों में रात-दिन
तमन्नाओ की कश्तियों को कोई डुबो गया होगा

सोचती हूँ की.....
बहुत तजुर्बा कमा लिया होगा उसने आज तक
वो कमज़ोर तना कितना मज़बूत हो गया होगा !!

ग़ज़लकार : परी ऍम 'श्लोक'

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