Tuesday, May 27, 2014

!! दिल में हो तुम और तुमसे कई गिला !!

कितना है शोर-ओ-गुल हसीं ये काफिला भी है
दिल में हो तुम ही और तुमसे कई गिला भी है

हो कितने दूर फिर भी कितने पास रहते हो
शायद ! इसी में 'श्लोक' आशिकी का मज़ा भी है

है लव्ज़ भी नहीं मगर कहने को तमाम बातें है
मेरी खामोशियो ने तेरे धड़कनो को छुआ भी है

लाख दावा करो की तुम मेरे नहीं हो सकते
हर सज़दे में मुझे पा लेने की फिर दुआ भी है

बेताबियो ने हलचल मचा रखी है तुझमे भी
दोनों और उठा बेक़राररियो का धुँआ भी है  

मैं सामने आती हूँ तो तू खुद को भूल जाता है
दीवानगी इस कदर तो तुझमे अब रवा भी है

वो जो ज़रूरी है मोहोब्बत के लिए दो लोगो में
तुझमे-मुझमे चल रहा वही सिलासिला भी है

किस जिंदगी की बात किया करते हो मुझसे
बता! मेरे बिना क्या तू इक लम्हा जिया भी है

होता अगर मुमकिन तेरे बगैर ही जी लेते 
मगर साँसों का तागा जाने क्यों? तुझसे ही जुड़ा भी है


ग़ज़लकार : परी ऍम 'श्लोक'

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