हर बार मेरा सब्र आजमाने को आया
जख्म नासूर फिर से दुखाने को आया
हँसता हुआ चेहरा उसे अच्छा नहीं लगा
शबनम के कतरे पलकों पे सजाने को आया
मंज़िल गश्त खाकर रास्तो में भटक गयी
वो ढेर मेरे हसरतो की जलाने को आया
उसके बिना नहीं होता मुकम्मल मेरा वज़ूद
ये खामी मेरे ज़ात की जताने को आया
उसे आरज़ू भी मेरी वो मेरा हो भी नहीं सकता
यही पैगाम मुझे पढ़ कर सुनाने को आया
नजाने किस बात का गुरुर रखता है वो पागल
मुझे हार कर भी वो जीता है बताने को आया
ग़ज़लकार: परी ऍम 'श्लोक'
जख्म नासूर फिर से दुखाने को आया
हँसता हुआ चेहरा उसे अच्छा नहीं लगा
शबनम के कतरे पलकों पे सजाने को आया
मंज़िल गश्त खाकर रास्तो में भटक गयी
वो ढेर मेरे हसरतो की जलाने को आया
उसके बिना नहीं होता मुकम्मल मेरा वज़ूद
ये खामी मेरे ज़ात की जताने को आया
उसे आरज़ू भी मेरी वो मेरा हो भी नहीं सकता
यही पैगाम मुझे पढ़ कर सुनाने को आया
नजाने किस बात का गुरुर रखता है वो पागल
मुझे हार कर भी वो जीता है बताने को आया
ग़ज़लकार: परी ऍम 'श्लोक'
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