ये कौन सी धुन में चल रही हूँ
गिर रही हूँ कभी संभल रही हूँ
मुझे खुद ही समझ नही आया
आखिर किस आग में जल रही हूँ
छूटी न हाथ से उंगलियां कल की
फिर भी कहती हूँ आगे बढ़ रही हूँ
अपनी आँखों में कभी झाँका ही नहीं
पर यहाँ सबका मिज़ाज़ पढ़ रही हूँ
मैं वही और है मेरा वज़ूद वही
फिर चेहरा से क्यों बदल रही हूँ
मुझे इतनी समझ कहाँ से आई ?
शायद! कुछ तजुर्बों से गुज़र रही हूँ
बर्फ का चट्टान मुझे कहने वालो
दरअसल अंदर से मैं उबल रही हूँ
तमन्ना तो मेरी कुछ भी नहीं 'श्लोक'
फिर किसकी तलाश कर रही हूँ !!!
ग़ज़लकार : परी ऍम 'श्लोक'
गिर रही हूँ कभी संभल रही हूँ
मुझे खुद ही समझ नही आया
आखिर किस आग में जल रही हूँ
छूटी न हाथ से उंगलियां कल की
फिर भी कहती हूँ आगे बढ़ रही हूँ
अपनी आँखों में कभी झाँका ही नहीं
पर यहाँ सबका मिज़ाज़ पढ़ रही हूँ
मैं वही और है मेरा वज़ूद वही
फिर चेहरा से क्यों बदल रही हूँ
मुझे इतनी समझ कहाँ से आई ?
शायद! कुछ तजुर्बों से गुज़र रही हूँ
बर्फ का चट्टान मुझे कहने वालो
दरअसल अंदर से मैं उबल रही हूँ
तमन्ना तो मेरी कुछ भी नहीं 'श्लोक'
फिर किसकी तलाश कर रही हूँ !!!
ग़ज़लकार : परी ऍम 'श्लोक'
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