उस रात............
लेकिन फिर भी वो रात बहुत उजली थी
कहीं दूर-दूर तक कोई आवाज़ नही थी
बस हलचल थी दिलो में दोनों तरफ
तमाम सितारे लिपटे हुए थे तुम्हारे आँचल से
कैसे भूल सकता हूँ मैं ?
इर्द-गिर्द से गुजरती हुई हवाओ कि शरारत
तुम्हारी सिल्की जुल्फों कि
जाल में उलझाती ही चली जा रही थी मुझे
वादियाँ ये फ़ज़ाएँ कोई प्रेम गीत गा रही थी
गिटार कि तरह बज रही थी धड़कने
तुम्हारे हाथ को थामे हुए
मैं जिंदगी के सबसे हसीन दौर को जी रहा था
कि अचानक सूरज कि रोशनी में मुझे तरेर दिया
मैं सहमा उठ खड़ा हुआ
नींद टूट चुकी थी और तुम भी नहीं थी
उस पल मुझे शिकायत हुई थी
सवेरो से बेहिसाब.....
मगर मैं क्या करता?
तुम्हे कहाँ खोजता ?
अब मैं तुम्हे पाने के लिए
करवटों कि पीड़ा को जीता हुआ
हर रात के सीने पे बेताबियाँ लिखता हूँ
मगर वो रात नही लौटती....
जिस रात ने अपने मायने ही पलट के
रख दिए हैं आज...... मेरे लिए
काश!
कि तुम फिर आजाओ एक बार
इस बार मैं हर भय को मसल के फेक दूंगा
और तुम्हारे साथ चल पडूंगा
वहां जहाँ तुम मुझे ले जाना चाहोगे
बिना किसी सवाल और जवाब के !!!
रचनाकार : परी ऍम 'श्लोक'
खबर अंधेरो को भी क्या थी?
कि उनका चेहरा सफ़ेद होने वाला है
प्यार की बर्फ़बारी की तहो में
वो दब के रह जाएगा...
बन जायेगी उस रात कि एक नवीन परिभाषा
बेशक अँधेरे छटपटा रहे होंगे
क्यूंकि रात अपनी चरम सीमा पे था
मगर उस रात
वो रात की बात कहाँ रह गयी थी
अचानक तुम आ गए थे
नहीं वो कोई चांदनी रात नही थी
जैसे की आज है !
लेकिन फिर भी वो रात बहुत उजली थी
कहीं दूर-दूर तक कोई आवाज़ नही थी
बस हलचल थी दिलो में दोनों तरफ
तमाम सितारे लिपटे हुए थे तुम्हारे आँचल से
कैसे भूल सकता हूँ मैं ?
इर्द-गिर्द से गुजरती हुई हवाओ कि शरारत
तुम्हारी सिल्की जुल्फों कि
जाल में उलझाती ही चली जा रही थी मुझे
वादियाँ ये फ़ज़ाएँ कोई प्रेम गीत गा रही थी
गिटार कि तरह बज रही थी धड़कने
तुम्हारे हाथ को थामे हुए
मैं जिंदगी के सबसे हसीन दौर को जी रहा था
कि अचानक सूरज कि रोशनी में मुझे तरेर दिया
मैं सहमा उठ खड़ा हुआ
नींद टूट चुकी थी और तुम भी नहीं थी
उस पल मुझे शिकायत हुई थी
सवेरो से बेहिसाब.....
मगर मैं क्या करता?
तुम्हे कहाँ खोजता ?
अब मैं तुम्हे पाने के लिए
करवटों कि पीड़ा को जीता हुआ
हर रात के सीने पे बेताबियाँ लिखता हूँ
मगर वो रात नही लौटती....
जिस रात ने अपने मायने ही पलट के
रख दिए हैं आज...... मेरे लिए
काश!
कि तुम फिर आजाओ एक बार
इस बार मैं हर भय को मसल के फेक दूंगा
और तुम्हारे साथ चल पडूंगा
वहां जहाँ तुम मुझे ले जाना चाहोगे
बिना किसी सवाल और जवाब के !!!
रचनाकार : परी ऍम 'श्लोक'
काश!
ReplyDeleteतुम चल पड़ती मे साथ
और निर्भय हो जाती तुम
....उस उजियारी रात
अच्छी रचना....
सादर
सुंदर ।
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