मुझे तौफे में मिलती है बड़ी बेमोल सौगाते
जिसने रंज है पाला..दिल में भी है..वही आते !
शिकवे न होते पैदा शायद वो भी समझ जाते
उस पत्थर के कानो में अगर जस्बात कह पाते !
आज फिर किनारो पे खुद दरिया चला आया
मगर हम ठहरे चकोर..बारिश के बूँद के हैं प्यासे !
जाने क्या सोच कर वो मुँह फेर हँसता रहा मुझपर ?
हालातो से होती बेरुखी अगर हम उसपल न मुस्कुराते !
अपनी आदत नहीं है पुरानी चीज़े बदल देने की
वरना तुम को तो हम कब का वीरानो में छोड़ आते !
हर वक़्त अकेले में बस यही सोच पलती है
हम दौड़े चले आते तुम अगर आवाज़ लगाते !
ज़माने के रंगो में 'श्लोक' जो तुम भी रंग जाते
जिस टीस में रोते हो फिर तुम्हारे करीब तक न आते !!
जिसने रंज है पाला..दिल में भी है..वही आते !
शिकवे न होते पैदा शायद वो भी समझ जाते
उस पत्थर के कानो में अगर जस्बात कह पाते !
आज फिर किनारो पे खुद दरिया चला आया
मगर हम ठहरे चकोर..बारिश के बूँद के हैं प्यासे !
जाने क्या सोच कर वो मुँह फेर हँसता रहा मुझपर ?
हालातो से होती बेरुखी अगर हम उसपल न मुस्कुराते !
अपनी आदत नहीं है पुरानी चीज़े बदल देने की
वरना तुम को तो हम कब का वीरानो में छोड़ आते !
हर वक़्त अकेले में बस यही सोच पलती है
हम दौड़े चले आते तुम अगर आवाज़ लगाते !
ज़माने के रंगो में 'श्लोक' जो तुम भी रंग जाते
जिस टीस में रोते हो फिर तुम्हारे करीब तक न आते !!
ग़ज़लकार : परी ऍम 'श्लोक'
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