Wednesday, May 28, 2014

"अनाथालय"


कैसा घर था वो ? 
बहुत बड़ा था
कई हज़ार बच्चो का आशियाना था
छोटे से बड़े उम्र के बच्चे
जहाँ खोजते फिर रहे थे
अपने हक़ का दुलार  
वहाँ प्यार तो देखा मैंने
मगर उनका नहीं
जिनकी ज़रूरत उनके बचपन को थी
कौन थे इतने प्यारे बच्चे
और वो नन्हा मात्र छेः महीने का
ममता भला कैसे न फूटे भीतर
उसके कोमलता को देख कर
मैंने उठाया उसे गोद में
बहुत देर तक उससे खेलती रही
आलिंगन करती रही
स्नेह फुट पड़ा था मुझमे
मगर फिर भी नहीं दे पायी मैं
उसे वो माँ का प्यार
जो उसकी किलकारियाँ मांग रही थी
उसे वो परवरिश जो उसका अधिकार था
मालूम नहीं मुझे
कौन थे वो लोग जिनको
खुदा ने इतना सुन्दर तौफा दिया था
चाहती थी कि न्यौछावर कर दूँ
मेरे अंदर सिमटी हुई ममता इन बच्चो पे
मगर मेरे पास केवल प्यार था
और उसके साथ था बहुत सारा अभाव
आह !
कैसा बचपन देखा मैंने ये आज
जो अनाथालय कि चारदीवारी से
जूझता हुआ कटता है

क्या कहूँ ?
इसके बाद मेरा मौन होना ही स्वाभाविक है !!!


रचनाकार : परी ऍम 'श्लोक'

((नन्हे प्यारे बच्चो को मेरे ढेर सारे प्यार से समर्पित ये लेख.... .... Love you baccho))
उन सभी स्टाफ का मैं बहुत सम्मान करती हूँ जो इन बच्चो कि देख रेख में अपना जीवन बिता रही है !!)

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