Saturday, July 12, 2014

"संबंध"

वादा
नहीं करुँगी
सुना है
वादे हो
या फिर
कसमे
सब अक्सर
टूट जाया करते हैं
मगर
हाँ !
करुँगी ज़रूर
कोशिश
अपने बूते से भी ज्यादा
संस्कारो पे
अडिग रह
हमारे सम्बन्धो को
सांस लेने के लिए
खुशियो का
वातावरण दे सकूँ
तुम्हारे
विश्वास कि
पहाड़ी पर
स्वयं को
सर्वपरी रख सकूँ
भेद न सके
कोई
शक का
धनुष जिसे...

बस इतना
कहूँगी तुम्हे

हमारे बीच के
अनबन कि
सिलवटों को
प्यार के
इस्त्री से
हटाती रहूंगी
मैं तुमसे
जनम-जनम का
ये संबंध
निभाती रहूंगी!! 
.....................परी ऍम श्लोक 

5 comments:

  1. आपसी विश्वास और समझदारी ही संबंधों की मुख्य धुरी होते हैं।
    बहुत अच्छा लगा पढ़ कर।


    सादर

    ReplyDelete
  2. इमानदार प्रयास ही काफी है ... सफल जरूर होता है इन्सान ...

    ReplyDelete
  3. बस इतना
    कहूँगी तुम्हे

    हमारे बीच के
    अनबन कि
    सिलवटों को
    प्यार के
    इस्त्री से
    हटाती रहूंगी
    मैं तुमसे
    जनम-जनम का
    ये संबंध
    निभाती रहूंगी!!
    भावनाओं से ओतप्रोत सार्थक और प्रभावी शब्द

    ReplyDelete

मेरे ब्लॉग पर आपके आगमन का स्वागत ... आपकी टिप्पणी मेरे लिए मार्गदर्शक व उत्साहवर्धक है आपसे अनुरोध है रचना पढ़ने के उपरान्त आप अपनी टिप्पणी दे किन्तु पूरी ईमानदारी और निष्पक्षता के साथ..आभार !!