कबसे उस क्षण की
प्रतीक्षा में बैठी थी
और बुने जा रही थी
मन ही मन
इन्द्रधनुष के रंगो से स्वेटर।
डाले जा रही थी
प्रेम के दिए में
आशाओ का तेल।
कि कभी तो
मनचाहा अंत होगा
मेरी प्रेम कहानी का भी
कभी तो इन
दहकते सिसकते लम्हों पर
डाल पाउंगी
संतोष का ठंडा पानी
कभी तो लिख पाऊँ मैं
सच्चे प्रेम के निर्मल भाव
जिसके कोमल शब्दों से
रस टपक रहे होंगे।
परन्तु मेरी हर आशा टूट गयी
हर दुआ बेअसर रही।
धड़कनो के रंगमंच पर
जिस कहानी का शुभारंभ
तुमने किया था
उस पर पर्दा गिरा कर
तुमने इस कहानी को
सुन्दर अध्याय देने कि
सारी संभावनाएं ही खत्म करदी।
---------परी ऍम 'श्लोक'
प्रतीक्षा में बैठी थी
और बुने जा रही थी
मन ही मन
इन्द्रधनुष के रंगो से स्वेटर।
डाले जा रही थी
प्रेम के दिए में
आशाओ का तेल।
कि कभी तो
मनचाहा अंत होगा
मेरी प्रेम कहानी का भी
कभी तो इन
दहकते सिसकते लम्हों पर
डाल पाउंगी
संतोष का ठंडा पानी
कभी तो लिख पाऊँ मैं
सच्चे प्रेम के निर्मल भाव
जिसके कोमल शब्दों से
रस टपक रहे होंगे।
परन्तु मेरी हर आशा टूट गयी
हर दुआ बेअसर रही।
धड़कनो के रंगमंच पर
जिस कहानी का शुभारंभ
तुमने किया था
उस पर पर्दा गिरा कर
तुमने इस कहानी को
सुन्दर अध्याय देने कि
सारी संभावनाएं ही खत्म करदी।
---------परी ऍम 'श्लोक'
बहुत सुंदर प्रस्तुति !
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत रचना परी। उम्मीद का दामन न छोड़ना कभी।
ReplyDeleteउमीद हरी रहना चाहिए ... पर्दा दुबारा भी उठता है ....
ReplyDeleteनिशब्द करती रचना.....
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत पंक्तियां.... आमीन...!!!
आपकी लिखी रचना शनिवार 26 जुलाई 2014 को लिंक की जाएगी...............
ReplyDeletehttp://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
बहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteसादर
वाह परी जी बहुत ही खूबसूरत रचना
ReplyDeleteBahut bahut shukriya ....
ReplyDeleteHardik dhanyaad aapka...
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