धीरे-धीरे तुम
सम्मान की ऊंचाइयों से
नीचे गिरते जा रहे हो
और आहिस्ता-आहिस्ता
मैं उठने की
कोशिश कर रही हूँ
अपने आपको पाने को
साफ़ कर रही हूँ दर्पण
धुंध की तरह जम गए हो
जिसपर तुम
गीत गाने के अलावा
हाँ जी की बिंदु के पार
अपनी आवाज़ को
नए आयाम देना चाहती हूँ
अपने आपको
इक पहचान देना चाहती हूँ
लम्बे समय से सोते हुए
थक चुकी हूँ
अब जागना चाहती हूँ
हमेशा हमेशा के लिए
मेरे साथ हो रही हिंसा को
कब्र में सुला देने को
सुनो!
तुम्हारे इरादो पे
नाचने का चलन
अब छोड़ रही हूँ
पांजेब बनी है बेड़ियां
इन्हे भी तोड़ रही हूँ
इससे ज्यादा
सहन की गुंजाईश मुझमें
नहीं अब नहीं !!!
------------------परी ऍम 'श्लोक'
सम्मान की ऊंचाइयों से
नीचे गिरते जा रहे हो
और आहिस्ता-आहिस्ता
मैं उठने की
कोशिश कर रही हूँ
अपने आपको पाने को
साफ़ कर रही हूँ दर्पण
धुंध की तरह जम गए हो
जिसपर तुम
गीत गाने के अलावा
हाँ जी की बिंदु के पार
अपनी आवाज़ को
नए आयाम देना चाहती हूँ
अपने आपको
इक पहचान देना चाहती हूँ
लम्बे समय से सोते हुए
थक चुकी हूँ
अब जागना चाहती हूँ
हमेशा हमेशा के लिए
मेरे साथ हो रही हिंसा को
कब्र में सुला देने को
सुनो!
तुम्हारे इरादो पे
नाचने का चलन
अब छोड़ रही हूँ
पांजेब बनी है बेड़ियां
इन्हे भी तोड़ रही हूँ
इससे ज्यादा
सहन की गुंजाईश मुझमें
नहीं अब नहीं !!!
------------------परी ऍम 'श्लोक'
बहुत खूब
ReplyDeleteतुम्हारे इरादो पे
ReplyDeleteनाचने का चलन
अब छोड़ रही हूँ
पांजेब बनी है बेड़ियां
इन्हे भी तोड़ रही हूँ
इससे ज्यादा
सहन की गुंजाईश मुझमें
नहीं अब नहीं !!!
वाह बहुत ही बढ़िया रचना परी जी.
सकारात्मकता की ओर बढ़ती इस सोच और इन कदमों का स्वागत है ! बहुत सुन्दर रचना और अशेष शुभकामनाएं !
ReplyDeleteपांजेब बनी है बेड़ियां
ReplyDeleteइन्हे भी तोड़ रही हूँ
और फिर आज़ाद होकर खुले आसमां मे उड़ने की बात ही कुछ और होगी।
सादर
Behtareen prastuti.
ReplyDeleteलम्बे समय से सोते हुए
ReplyDeleteथक चुकी हूँ
अब जागना चाहती हूँ
हमेशा हमेशा के लिए
मेरे साथ हो रही हिंसा को
कब्र में सुला देने को
सुन्दर अभिव्यक्ति
कल 01/अगस्त/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद !
आज़ादी जब मिले अच्छा है .... उसे झपट लेना चाहिए ....
ReplyDeleteसबसे ज्यादा इस पोस्ट के picture ने ध्यान आकर्षित किया । बिल्कुल नृत्य की भांति भावपूर्ण कथ्य ।
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