असहाय हो जाती हूँ
जब रहता नहीं
मन पर
मेरे स्वयं का
नियंत्रण..
खींची नहीं जाती
इसकी लगाम
गिरगिट की तरह
बदलता रहता है
अपना रंग
और
ये हदो को पार करके
पैदा कर देता है
अजीब सी परिस्थिति
भागती रहती हूँ मैं
इसके पीछे-पीछे
व्यर्थ ही
समझ नहीं पाती
इसकी मंशा
और
जब समझ पाती हूँ
तो दोष खुद को
देने के अलावा
कोई दूसरा
विकल्प नहीं रहता !!!
____________परी ऍम श्लोक
जब रहता नहीं
मन पर
मेरे स्वयं का
नियंत्रण..
खींची नहीं जाती
इसकी लगाम
गिरगिट की तरह
बदलता रहता है
अपना रंग
और
ये हदो को पार करके
पैदा कर देता है
अजीब सी परिस्थिति
भागती रहती हूँ मैं
इसके पीछे-पीछे
व्यर्थ ही
समझ नहीं पाती
इसकी मंशा
और
जब समझ पाती हूँ
तो दोष खुद को
देने के अलावा
कोई दूसरा
विकल्प नहीं रहता !!!
____________परी ऍम श्लोक
मन सदैव कहाँ नियंत्रण में रह पता है...बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
ReplyDeleteमन के द्वंद्व को व्याख्यायित करती सार्थक प्रस्तुति ! बहुत सुंदर !
ReplyDeleteहम सभी कभी न कभी ऐसे द्वंद से जूझते हैं।
ReplyDeleteबेहतरीन पोस्ट।
सादर
umda lekhan...
ReplyDeleteबहुत उम्दा !
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर बढ़िया
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