Friday, July 25, 2014

अपना अलग उसूल है...

जाओ नहीं मालूम मुझे
इन बेतुके सवालो का जवाब
किन्तु हाँ!
मैं अपने वज़ूद को
मदारी का बंदर नहीं बनाना चाहती
कि सभ्यता कि डफली बजा-बजा कर
तुम जो भी चाहे करवाते रहो
कर्तव्यों का घुंगरू पहन
अपने इच्छाओ के शव पर
सिर्फ तुम्हारी ख़ुशी के लिए
जीवन भर नृत्य करती रहूँ
मुझे पिंजरे का तोता बना
जितना भी रटवाओ
बस उतने ही शब्द बोलूं
नहीं मानती मैं ऐसे नियम
जो मुझे जाहिल बना दे
नहीं परोस सकती अपने आप को
तुम्हारे मुताबिक
दर्द होगा तो आह! करुँगी
गलत का हमेशा बहिष्कार
क्यूंकि मुझे नहीं सजाना
तुम्हारी ज्यातिति सह कर
महानता का ताज अपने सर पर
मेरा अपना उसूल है
जो कहता है
शोषित की मंडली में शामिल होकर
जीवन की लालसा पालने से बेहतर है
विरोध करते हुए
इक वीरांगना कि तरह
वीर गति को प्राप्त हो जाओ !!!


------------------परी ऍम 'श्लोक'

4 comments:

  1. शोषित की मंडली में शामिल होकर
    जीवन की लालसा पालने से बेहतर है
    विरोध करते हुए
    इक वीरांगना कि तरह
    वीर गति को प्राप्त हो जाओ !!!
    ..सच कहा किसी के ऊँगली पर जो एक बार नाच गया उसे जीवन भर नचाने वाले बहुतेरे मिलते रहेंगे इसलिए अपने सर उठाकर जीना ही जिंदगी है वर्ना नारकीय जीवन जिया भी तो क्या जिया!
    बहुत सुन्दर

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  2. शोषित की मंडली में शामिल होकर
    जीवन की लालसा पालने से बेहतर है
    विरोध करते हुए
    इक वीरांगना कि तरह
    वीर गति को प्राप्त हो जाओ !!!
    ..सच कहा किसी के ऊँगली पर जो एक बार नाच गया उसे जीवन भर नचाने वाले बहुतेरे मिलते रहेंगे इसलिए अपने सर उठाकर जीना ही जिंदगी है वर्ना नारकीय जीवन जिया भी तो क्या जिया!
    बहुत सुन्दर

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  3. इसलिए अपने उसूल पर हमेशा डटे रहिए

    सादर

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