Wednesday, July 2, 2014

"सफलता की दौड़ में इंसान तनहा"

चुनी है मैंने वो राह
जिसमे हैं कांटे..कंकड़..पत्थर
और उठी हैं लोहे की दीवार..... 
छूट जाएगा इस सफर में
खास लोगो का झुण्ड मालूम हैं..
किन्तु 
मेरे इरादे हैं तलवार की धार..
मैं चलूंगी बिन माने हार
पाउंगी मंज़िल निश्चय ही
निसंदेह
ये दुनिया एकदम गोल  है 
इक दिन वो झुण्ड होगा मेरे सामने
मेरे लिए तालिया ठोंकता हुआ
जल-भुन के राख होता हुआ
किन्तु मैं उनसे
कोसो फासले पर खड़ी होऊंगी
जहाँ पहुँचने के लिए
करना पड़ेगा उन्हें
वही से शुरुआत जो मैंने की थी
खोना होगा वो जो मैंने खोया था
होना पड़ेगा उन्हें अकेला
जब कोई साथ नहीं देता
कितना छेदता है ये शब्द
जब सुनना पड़ता है
"बाप की औकात नहीं
बेटी के सपने देखो आसमानी हैं
चली है चाँद पे घर बनाने"
सहना पड़ेगा पीड़ा का हर दौर
लगाना पड़ेगा स्वयं को
दिलासे का मलहम
तब समझ पाएंगे कहीं 
मेरी सफलता की ये ईमारत
टिकी हुई है
अनगिनत समझौतों के मज़ार पर !!!


_________परी ऍम 'श्लोक'

3 comments:

  1. Sachche Man se kiye gaye har kaam main safalta milti hai, Honsla Kabhi na kam ho

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  2. जब कोई साथ नहीं देता
    कितना छेदता है ये शब्द
    जब सुनना पड़ता है
    "बाप की औकात नहीं
    बेटी के सपने देखो आसमानी हैं
    चली है चाँद पे घर बनाने"
    एकदम सटीक

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  3. Tipanni hetu bahut bahut dhanywad....

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