बेउम्मीदी को कहीं गुमराह कर देते हो तुम..
दुःख मेरे हिस्से का अधमरा कर देते हो तुम..
दुःख मेरे हिस्से का अधमरा कर देते हो तुम..
कभी कभी जला के ख़ाक कर देते हो मुझे..
तो कभी कभी नया-नया सा कर देते हो तुम..
तो कभी कभी नया-नया सा कर देते हो तुम..
नजाने क्या है मगर कोई मीठा सा अहसास है..
मुझे छूकर मुझमें जिसे रवा कर देते हो तुम..
मुझे छूकर मुझमें जिसे रवा कर देते हो तुम..
जहाँ भी देखूं तेरी ही झलक मिलती है मुझे..
हर ज़र्रे को अपना आइना कर देते हो तुम..
हर ज़र्रे को अपना आइना कर देते हो तुम..
मुझे ठेस लगने से पहले ही मेरे जख्मो की..
हर दफा आकर मेरी दवा कर देते हो तुम..
हर दफा आकर मेरी दवा कर देते हो तुम..
मेरी ओर आने वाली तमाम मुश्किलो को..
मेरी चौखट से ही रफा-दफा कर देते हो तुम..
मेरी चौखट से ही रफा-दफा कर देते हो तुम..
मतलब परस्त दुनिया में जब कहते हो कि तुम मेरे हो..
मेरी खुशियाँ कई गुना कर देते हो तुम ..
मेरी खुशियाँ कई गुना कर देते हो तुम ..
कदम-कदम पे अपनी बेपनाह वफाओ से..
रिश्तो के असर को और गहरा कर देते हो तुम..
रिश्तो के असर को और गहरा कर देते हो तुम..
अपनी नज़र से मुझको नूर बक्शते हो...
मेरे रंग रूप को जैसे कि अप्सरा कर देते हो तुम..
मेरे रंग रूप को जैसे कि अप्सरा कर देते हो तुम..
मेरे हर वक़्त को अपना हिस्सा देकर..
जिंदगी का हर लम्हा बेहद महंगा कर देते हो तुम !!
जिंदगी का हर लम्हा बेहद महंगा कर देते हो तुम !!
-----------------------परी ऍम श्लोक
बहुत खूब----
ReplyDeleteAabhaar aapka Subedaar ji...
ReplyDeleteलाजवाब रचना
ReplyDeleteसादर
आज 09 /जुलाई /2014 को आपकी पोस्ट का लिंक है http://nayi-purani-halchal.blogspot.in (कुलदीप जी की प्रस्तुति में ) पर
ReplyDeleteधन्यवाद!
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल। प्यार के भावो से बिगते शब्द
ReplyDelete। क्या बात है।
बहुत खूब ।
ReplyDeleteसुंदर रचना, ऐसा हमसफ़र सभी को मिले.
ReplyDeleteखूबसूरत ग़ज़ल।
ReplyDeleteवह क्या बात ... लाजवाब ग़ज़ल ...
ReplyDeleteशब्दों की अनवरत खुबसूरत अभिवयक्ति...
ReplyDeleteशब्दों की अनवरत खुबसूरत अभिवयक्ति...
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर लाजवाब
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