नजाने तुम सच बोलते हो...
या फिर
तुम्हारी आँखे...
इक ओर इंकार है कि
खत्म नहीं होता..
एक के बाद एक
बनावटी बातो का
सिलसिला...
निरंतर चलता ही रहता है
तो दूसरी तरफ इज़हार
जो ना चाहते हुए भी
झलती हैं
तुम्हारी आँखों के दर्पण में..
ओर कह जाती हैं..
चुप रहकर भी
तुम्हारी मनोदशा...
समझ नही आता
किस बात को ज्यादा तवज्जु दूँ
वो
जो तुम छिपा रहे हो
या फिर
वो
जो मैं देख पा रही हूँ
तुम्हारी हाँ !
और न
इन दोनों कि स्थिति
खोना बस मुझे ही है !!!
_______परी ऍम "श्लोक"
या फिर
तुम्हारी आँखे...
इक ओर इंकार है कि
खत्म नहीं होता..
एक के बाद एक
बनावटी बातो का
सिलसिला...
निरंतर चलता ही रहता है
तो दूसरी तरफ इज़हार
जो ना चाहते हुए भी
झलती हैं
तुम्हारी आँखों के दर्पण में..
ओर कह जाती हैं..
चुप रहकर भी
तुम्हारी मनोदशा...
समझ नही आता
किस बात को ज्यादा तवज्जु दूँ
वो
जो तुम छिपा रहे हो
या फिर
वो
जो मैं देख पा रही हूँ
तुम्हारी हाँ !
और न
इन दोनों कि स्थिति
खोना बस मुझे ही है !!!
_______परी ऍम "श्लोक"
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