मालूम नहीं .........
कौन है ? क्या है ?
कहाँ हैं ?
मगर
फिर भी है
इंतज़ार.....
और
जब भी
ये इंतज़ार
मद्धम पड़ने लगता है
तो
उठता है
सवाल
मेरे होने पर
ह्रदय
जिसका उत्तर
निसंकोच देकर
मुझे आत्मीय
शान्ति देता है
कि
तुम्हारा होना ही तो
मेरे होने का प्रमाण है !!
---------------परी ऍम 'श्लोक '
कौन है ? क्या है ?
कहाँ हैं ?
मगर
फिर भी है
इंतज़ार.....
और
जब भी
ये इंतज़ार
मद्धम पड़ने लगता है
तो
उठता है
सवाल
मेरे होने पर
ह्रदय
जिसका उत्तर
निसंकोच देकर
मुझे आत्मीय
शान्ति देता है
कि
तुम्हारा होना ही तो
मेरे होने का प्रमाण है !!
---------------परी ऍम 'श्लोक '
व्यष्टिवाद और समष्टिवाद के द्वन्द के बीच मुखरित सुन्दर एवम् अनुभूतिपरक लेखन
ReplyDeleteजीवन की आपा धापी में लगता
अस्तित्वबोध का भाष्य सरल है
अनुभूतिपरक सन्दर्भ की भाषा
कहीं ठोस तो कही तरल है
मधुमिश्रित आमन्त्रण भी है
कभी सुधा तो कभी गरल है
अज़ीज़ जौनपुरी
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteअति सुन्दर !
ReplyDeleteतुम्हारा होना ही तो
मेरे होने का प्रमाण है !!
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ !
बहुत खूब परी जी
ReplyDeleteसादर