काट दो अन्याय अगर सर उठाये तो ....
फूंक दो पर जब भी ज्यादा फड़फड़ाये तो...
सूरज को निगल कर शाम का सकून भी चुग ले ...
मशाल जला दो अँधेरा अगर घर में आये तो ...
हवाएं जब तक ठंडक दे इज्जत बक्षो उन्हें...
बंदी बना लो जब भी घरोंदा गिराये तो....
------------परी ऍम "श्लोक"
फूंक दो पर जब भी ज्यादा फड़फड़ाये तो...
सूरज को निगल कर शाम का सकून भी चुग ले ...
मशाल जला दो अँधेरा अगर घर में आये तो ...
हवाएं जब तक ठंडक दे इज्जत बक्षो उन्हें...
बंदी बना लो जब भी घरोंदा गिराये तो....
------------परी ऍम "श्लोक"
वाह बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबढ़िया ।
ReplyDeleteबेहद उम्दा रचना और बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
ReplyDeleteनयी पोस्ट@मुकेश के जन्मदिन पर.
behtareen....
ReplyDelete