मैं हर वक़्त तुम्हे भुलाने कि कोशिश करती हूँ
तुम हर वक़्त याद आने कि वजह ढूँढ लेते हो ...
मैं तुमको मिटाने को अतीत कि किताब फाड़ती हूँ
तुम फिर आज के पन्नो में अपनी जगह ढूँढ लेते हो
अपने जख्मो कि जलन को आहो से ठंडा करती हूँ
तुम फिर मेरे खातिर नयी सज़ा ढूँढ लेते हो..
सोचती हूँ तुमसे तालुक तोड़ कर फासला बना लूँ
मगर तुम मेरे कदमो के निशान ढूँढ लेते हो..
मैं मुस्कुरा के अगर सुबह के दहलीज़ पे दस्तक दूँ
तो तुम दर्द का फिर इक नया सिलसिला ढूँढ लेते हो..
आईने के शक्ल में पहले मुझे इत्मीनान से तराशते हो
फिर तोड़ देने को पत्थर भी......बड़ा ढूँढ लेते हो !!
---------------परी ऍम 'श्लोक'
तुम हर वक़्त याद आने कि वजह ढूँढ लेते हो ...
मैं तुमको मिटाने को अतीत कि किताब फाड़ती हूँ
तुम फिर आज के पन्नो में अपनी जगह ढूँढ लेते हो
अपने जख्मो कि जलन को आहो से ठंडा करती हूँ
तुम फिर मेरे खातिर नयी सज़ा ढूँढ लेते हो..
सोचती हूँ तुमसे तालुक तोड़ कर फासला बना लूँ
मगर तुम मेरे कदमो के निशान ढूँढ लेते हो..
मैं मुस्कुरा के अगर सुबह के दहलीज़ पे दस्तक दूँ
तो तुम दर्द का फिर इक नया सिलसिला ढूँढ लेते हो..
आईने के शक्ल में पहले मुझे इत्मीनान से तराशते हो
फिर तोड़ देने को पत्थर भी......बड़ा ढूँढ लेते हो !!
---------------परी ऍम 'श्लोक'
Bahut sundar bhavo ka sancharn
ReplyDeleteबहित खूब परी जी
ReplyDeleteसादर
सोचती हूँ तुमसे तालुक तोड़ कर फासला बना लूँ
ReplyDeleteमगर तुम मेरे कदमो के निशान ढूँढ लेते हो..
बहुत लाजवाब ... प्रेम में फांसले बनाना आसान कहाँ ... दिल से दूर होना भी आसान नहीं ...
दिल से लिखी ..सुन्दर रचना .....
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है
संजय भास्कर
हरियाणा
http://sanjaybhaskar.blogspot.in
मैं तुमको मिटाने को अतीत कि किताब फाड़ती हूँ
ReplyDeleteतुम फिर आज के पन्नो में अपनी जगह ढूँढ लेते हो
अपने जख्मो कि जलन को आहो से ठंडा करती हूँ
तुम फिर मेरे खातिर नयी सज़ा ढूँढ लेते हो..
क्या बात है !
Aap sabhi ka tahe dil se shukrgujaar hun.....bahut shukriyaa...
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