चीख सुनके
बहरे हो जाना
मौन होकर
दार्शनिक बने रहना
गूंगे हो जाना
जुबान पर ताला लटका कर
मानवता तो जैसे
कोढ़िया गयी है
इंसानो के बीच में
कोई नंगा करता है
कोई उसपे चर्चा करता है
लेकिन तन ढांपने का साहस
इन कायरो में नहीं
जंगा गया है कर्तव्य
घोट दिया है नेकियों का गला
अपनी मतलबपरस्ती में
भूल गए
जिस अवस्था में मैं हूँ
वो कभी भी
किसी भी घर की स्त्रियों को
अपने चुंगल में जकड़ सकता है
बनो कायर पहनो चूड़ी
बैठो छिप कर
जो लोग तुम्हारी
आवाज़ पे भाग खड़े होते
अपने डर से
बढ़ाओ उनका हौसला
हीन कर्मो कि चाक पर
दीन समय के रूप को आकार दो
आने वाली नारी पीढ़ी को दो
गंदे मानसिकता का तौफा
अखबारों में पढ़ो
टीवी पे देखो मेरी दुर्गति
करो मोमबत्तियों का मार्च
चंद हमदर्द लोगो कि अगुवाई में
दया दिखाओ अपनी
लेकिन तब क्या फायदा आखिर ?
जब
तुम्हारी संवेदनहीनता
मुझे मृत्यु के मुख में डाल दे
मान को तितिर-बितिर करके...!!
------------------परी ऍम 'श्लोक'
कटु सत्य .........
ReplyDeleteएक शब्द पढ़ी मैं
'कोढ़िया'
और यह शब्द छत्तीसगढ़ में प्रचलित है
इसका अर्थ है आलसी या अलाल
इस कविता में इसे मैं जहां तक समझती हूँ
निर्विकार के अर्थ में उपयोग ङुआ है
सादर
मैं उपलब्ध रहती हूँ यहाँ
Kodhiya....ka matlab carm rog se hai iss rog k baad shareer kA hissa kat k girane lagta hai i
Deleteकोढ़ रोग से बना शब्द है.
Deleteआपका शुक्रिया
ReplyDeleteकृपया अपने ब्लॉग को ब्लॉगसेतु http://www.blogsetu.com/ से जोड़ें ताकि आपकी रचनात्मकता से अधिक से अधिक लोग वाकिफ हो सकें .... !!!
कटु सत्य को बयां करती रचना
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति शलोक जी.......
ReplyDeleteएक सम्पूर्ण पोस्ट और रचना!
ReplyDeleteयही विशे्षता तो आपकी अलग से पहचान बनाती है!
समाज हद से ज्यादा संवेदनहीन हो चुका है।
ReplyDeleteजिस नारी को नव दुर्गों मे पूजते हैं , उसे ही अपनी करनी से समय समय पर अपमानित करते रहते हैं।
बहुत अच्छा लिखा आपने।
सादर
दया दिखाओ अपनी
ReplyDeleteलेकिन तब क्या फायदा आखिर ?
जब
तुम्हारी संवेदनहीनता
मुझे मृत्यु के मुख में डाल दे
मान को तितिर-बितिर करके...!!...kroor, nirmam sach. maarmik abhivyakti !
....
सुंदर प्रभावी रचना.
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