सावन के झूलो में अब बात कहाँ सुहानी है....
तेरे बिना तो हर मौसम जीना ही बेमानी है ...
तू क्या जाने बात जिया की के कितनी तूफानी है...
कभी-कभी इन आँखों में आ जाता सुनामी है....
तेरे प्रीत ने बिखेरा रंग हर ओर हरिया धानी है....
रगड़ा बहुत मगर न छूटा ऐसी अमिट निशानी हैं....
खेल-खेल में कश्ती डाला था बारिश के पानी में
न डूबी न पार लगी मझधार में इक कहानी है
इन बूंदो के साथ हुई जैसे पीड़ा की आगमानी है
तन के साथ मन जले ये सब तेरी ही मेहरबानी है
कोयल कूके...नाचे मोर हर ओर नयी रवानी है
बस इस हाल में खुशिया भी हुई हमसे बेगानी हैं
वक़्त रुका न हम आगे बढे राहे वही अंजानी है
नए दौर में भी अपनी....चाहत बड़ी पुरानी है
_________परी ऍम 'श्लोक'
तेरे बिना तो हर मौसम जीना ही बेमानी है ...
तू क्या जाने बात जिया की के कितनी तूफानी है...
कभी-कभी इन आँखों में आ जाता सुनामी है....
तेरे प्रीत ने बिखेरा रंग हर ओर हरिया धानी है....
रगड़ा बहुत मगर न छूटा ऐसी अमिट निशानी हैं....
खेल-खेल में कश्ती डाला था बारिश के पानी में
न डूबी न पार लगी मझधार में इक कहानी है
इन बूंदो के साथ हुई जैसे पीड़ा की आगमानी है
तन के साथ मन जले ये सब तेरी ही मेहरबानी है
कोयल कूके...नाचे मोर हर ओर नयी रवानी है
बस इस हाल में खुशिया भी हुई हमसे बेगानी हैं
वक़्त रुका न हम आगे बढे राहे वही अंजानी है
नए दौर में भी अपनी....चाहत बड़ी पुरानी है
_________परी ऍम 'श्लोक'
खेल-खेल में कश्ती डाला था बारिश के पानी में
ReplyDeleteन डूबी न पार लगी मझधार में इक कहानी है
इन बूंदो के साथ हुई जैसे पीड़ा की आगमानी है
तन के साथ मन जले ये सब तेरी ही मेहरबानी है
बढ़िया