इस जिंदगी से कितने गिले हैं
ठहरे जो दिल में वो बिछड़े हैं
जो ख़्वाब सजाया शिद्दत लगा के
टुकड़े उन्ही के अक्सर चुभे हैं
हँसते हुए जब लगते हैं अच्छे
फिर गम के साये क्यूँ लिपटे हुए हैं
क्या सीख कर पाया हैं हमने
अपने ही तर्ज़ुर्बो में खुद जले हैं
किसको सुनाते हम अपनी कहानी
हर इंसान अपनी धुन में चले हैं
अपनी भी ऐसी रही जिंदगानी
समंदर थे हम और प्यासे रहे हैं
कैसे पा लेते भला पूरी कायनात
जब खुद ही ताउम्र अधूरे रहे हैं
उसको याद होंगे हम सोचे भी कैसे
हिचकियों को आये हुए अरसे हुए हैं
जिनके लिए बेचे थे अरमान अपने
उनके ठोकर में हम अब खुद पड़े हैं
वक़्त की आंधी से टकरा के 'श्लोक'
हम तिनके से हर ओर बिखरे पड़े हैं
______________परी ऍम श्लोक
ठहरे जो दिल में वो बिछड़े हैं
जो ख़्वाब सजाया शिद्दत लगा के
टुकड़े उन्ही के अक्सर चुभे हैं
हँसते हुए जब लगते हैं अच्छे
फिर गम के साये क्यूँ लिपटे हुए हैं
क्या सीख कर पाया हैं हमने
अपने ही तर्ज़ुर्बो में खुद जले हैं
किसको सुनाते हम अपनी कहानी
हर इंसान अपनी धुन में चले हैं
अपनी भी ऐसी रही जिंदगानी
समंदर थे हम और प्यासे रहे हैं
कैसे पा लेते भला पूरी कायनात
जब खुद ही ताउम्र अधूरे रहे हैं
उसको याद होंगे हम सोचे भी कैसे
हिचकियों को आये हुए अरसे हुए हैं
जिनके लिए बेचे थे अरमान अपने
उनके ठोकर में हम अब खुद पड़े हैं
वक़्त की आंधी से टकरा के 'श्लोक'
हम तिनके से हर ओर बिखरे पड़े हैं
______________परी ऍम श्लोक
बढ़िया है :)
ReplyDeleteवाह बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteआपकी इस रचना का लिंक दिनांकः 15 . 8 . 2014 दिन शुक्रवार को I.A.S.I.H पोस्ट्स न्यूज़ पर दिया गया है , कृपया पधारें धन्यवाद !
ReplyDeleteसुंदर...
ReplyDeleteमन को छूती भावुक रचना
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
उत्कृष्ट प्रस्तुति
सादर --
आग्रह है --मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों
आजादी ------ ???