बहुत दिन हुए
इस लड़ाई को
तुम कहो तो मैं
मांग लेती हूँ माफ़ी
उस तरह
जिस तरह से
तुम्हे संतुष्टि हो जाए
तुमसे दूर रहकर
भला क्या मिल जाएगा मुझे
बस जान निकलती है
लम्हा-लम्हा....
तुम भी न हट छोड़ दो
जिंदगी का क्या पता
कल रहूँ या न रहूँ मैं
जाने कब
बुलावा आ जाए मौत का
तुम्हारा सारा हट ..
धरा का धरा रह जाए
फिर लौटूंगी न मैं
चाहे लाख आवाज़ देना
न ही ये मौसम आएंगे
न ही ये मौसम आएंगे
आओ इस बारिश
मिलके खूब भीगते हैं
ठण्ड से उठती
ठण्ड से उठती
कपकपी में हिलते होंठो से
मिटा देते हैं सारे शिकवे
मिटा देते हैं सारे शिकवे
करते हैं नज़रो से संवाद
आओ न ..........
जी लेती हूँ तुझमे मैं
ज़रा सा और_______
तू भी जी ले मुझमे
ज़रा सा और _______
मेरे पास है जिंदगी की हद
बस....
ज़रा सा और........!!
ज़रा सा और........!!
_______परी ऍम 'श्लोक'
बहुत , बहुत ही खूबसूरत अहसास और रुई की तरह नर्म शब्द स्पर्श , शुभकामनायें !
ReplyDeleteबहुत खूब परी जी
ReplyDeleteसादर
तुम भी न हट छोड़ दो
ReplyDeleteजिंदगी का क्या पता
कल रहूँ या न रहूँ मैं
जाने कब
बुलावा आ जाए मौत का
तुम्हारा सारा हट ..
धरा का धरा रह जाए
फिर लौटूंगी न मैं
चाहे लाख आवाज़ देना
न ही ये मौसम आएंगे
बहुत बढ़िया
wah bahut sundar
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