मैं आज़ाद हूँ
कोई बंदिश नहीं मुझपे
मुझसे कोई सवाल तलब नही करता
मेरी किसी को जवाबदेही नहीं
हूँ तो मर्द ही न
बेटा हूँ तो कभी किसी का पति
दाब रहता है मेरा
माँ सोचती है मैं बच्चा हूँ
बीवी समझती है मैं शरीफ
आ... हा..
यही तो विडम्बना है
बहुत बड़ी भूल है इनकी
मुझे अपने मनसूबे को अंजाम देने में
इनलोगो का यही अन्धविश्वास
बहुत काम आता है
किसी को पता ही नहीं
कभी बस में ..कही मेट्रो में ..
कभी खाली सड़क..कभी भरा बाजार
कहीं भी उतर आता हूँ मैं अपनी नीचता पर
घर से बाहर मैं बिलकुल
खुले सांड कि तरह होता हूँ
लाल कपड़े सी
लड़कियों कि खुशबू सूंघते ही
ढेरो संवेदनाओ का संचरण होता है मुझमे
हार्मोन से खिंचता हूँ
लड़की दिख जाए तो
जो मुँह में आये बकता हूँ
मैं किसी से उम्र नही पूछता
क्यूंकि है तो स्त्री ही न
और मेरे लिए वो बस देह है
जिसे देख कर मैं बउरा जाता हूँ
बस सीधा छेड़छाड़ करता हूँ
मन में आये तो
इससे भी पार जाता हूँ
मुझे पाना होता है
और मैं पा लेता हूँ स्त्री को
कभी बल से तो कभी छल से
जब कोई मेरे आगे
न करे विरोध करे
तो झल्लाता हूँ
कभी जान से मार देता हूँ
कभी तेज़ाब डाल देता हूँ..
मुझे पसंद नहीं
कोई स्त्री मुझपे चीखे
या मेरी मंशा के आड़े आये
जो करुँ चुपचाप सह ले
अपना भाग्य बना ले इसे
जानते हो
मेरे साहस को कितनी हवा मिलती है
जब मैं कोई घिनौना काम करता हूँ
लोग केवल तमाशा देखते हैं
कोई बोलता नहीं
नपुंसक है कायर है सब
और मैं सबसे बलशाली
जिससे सब खौफ खाते है
लगता है इस बात से अनभिज्ञ है वो सब
ऐसे ही उनकी बेटियां भी आय दिन
हमारे द्वारा उत्पीड़न से गुजरती हैं
बेवकूफ लोग
जब तक ऐसे रहेंगे
हम जैसे हैं वैसे ही करते रहेंगे !!!
____________परी ऍम 'श्लोक'
कोई बंदिश नहीं मुझपे
मुझसे कोई सवाल तलब नही करता
मेरी किसी को जवाबदेही नहीं
हूँ तो मर्द ही न
बेटा हूँ तो कभी किसी का पति
दाब रहता है मेरा
माँ सोचती है मैं बच्चा हूँ
बीवी समझती है मैं शरीफ
आ... हा..
यही तो विडम्बना है
बहुत बड़ी भूल है इनकी
मुझे अपने मनसूबे को अंजाम देने में
इनलोगो का यही अन्धविश्वास
बहुत काम आता है
किसी को पता ही नहीं
कभी बस में ..कही मेट्रो में ..
कभी खाली सड़क..कभी भरा बाजार
कहीं भी उतर आता हूँ मैं अपनी नीचता पर
घर से बाहर मैं बिलकुल
खुले सांड कि तरह होता हूँ
लाल कपड़े सी
लड़कियों कि खुशबू सूंघते ही
ढेरो संवेदनाओ का संचरण होता है मुझमे
हार्मोन से खिंचता हूँ
लड़की दिख जाए तो
जो मुँह में आये बकता हूँ
मैं किसी से उम्र नही पूछता
क्यूंकि है तो स्त्री ही न
और मेरे लिए वो बस देह है
जिसे देख कर मैं बउरा जाता हूँ
बस सीधा छेड़छाड़ करता हूँ
मन में आये तो
इससे भी पार जाता हूँ
मुझे पाना होता है
और मैं पा लेता हूँ स्त्री को
कभी बल से तो कभी छल से
जब कोई मेरे आगे
न करे विरोध करे
तो झल्लाता हूँ
कभी जान से मार देता हूँ
कभी तेज़ाब डाल देता हूँ..
मुझे पसंद नहीं
कोई स्त्री मुझपे चीखे
या मेरी मंशा के आड़े आये
जो करुँ चुपचाप सह ले
अपना भाग्य बना ले इसे
जानते हो
मेरे साहस को कितनी हवा मिलती है
जब मैं कोई घिनौना काम करता हूँ
लोग केवल तमाशा देखते हैं
कोई बोलता नहीं
नपुंसक है कायर है सब
और मैं सबसे बलशाली
जिससे सब खौफ खाते है
लगता है इस बात से अनभिज्ञ है वो सब
ऐसे ही उनकी बेटियां भी आय दिन
हमारे द्वारा उत्पीड़न से गुजरती हैं
बेवकूफ लोग
जब तक ऐसे रहेंगे
हम जैसे हैं वैसे ही करते रहेंगे !!!
____________परी ऍम 'श्लोक'
सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteदरिंदा ऐसा ही होता है .
ReplyDeleteसटीक रचना
ReplyDeleteBehatareen
ReplyDeleteBehatareen
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteबहुत सटीक लिखा आपने
ReplyDeleteसादर
समसामयिक रचना
ReplyDeleteकल 26/अगस्त/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद !
उमदा प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteBahut sunder Rachna
ReplyDeleteसटीक रचना ...
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