झूठा सा भान हुआ था
कि रेत का
सहरा हो गया है
दिल !
कि रेत का
सहरा हो गया है
दिल !
बंज़र...बदहवास..
सूख के चटक चुके है
जज्बात !
सूख के चटक चुके है
जज्बात !
मिट चुका है
जीवन के अध्याय से
तुम्हारे होने
और न होने का अर्थ !
जीवन के अध्याय से
तुम्हारे होने
और न होने का अर्थ !
पर तुम्हारी याद के बाद
आँखों में उतरी
जो सुनामी मैंने देखी
वो गलतफहमियों को
अपने साथ बहा ले गयी !
आँखों में उतरी
जो सुनामी मैंने देखी
वो गलतफहमियों को
अपने साथ बहा ले गयी !
यकीन मानो
मैंने पुरे शिद्दत के साथ
फैसलों का पहाड़ उठाया था
संतोष का खुराक लेकर
काट रही थी समय !
मैंने पुरे शिद्दत के साथ
फैसलों का पहाड़ उठाया था
संतोष का खुराक लेकर
काट रही थी समय !
लेकिन फिर
स्नेह कि चासनी से
लबालब भरे उन यादो ने
मुझे लालच में डाल दिया
अपने ही फैसले पर
कमज़ोर पड़ने लगी हूँ मैं !
लबालब भरे उन यादो ने
मुझे लालच में डाल दिया
अपने ही फैसले पर
कमज़ोर पड़ने लगी हूँ मैं !
सोचती हूँ
कह दूँ तुम्हे
एक बार फिर
कि लौट आओ!
कह दूँ तुम्हे
एक बार फिर
कि लौट आओ!
जिन अहसासों के जंगल में
गुस्से कि आग मैंने लगायी थी
वो सावन कि
रिमझिम बूंदो ने बुझा दी है !
पर अब कहाँ रहा उचित
ये कहने को.....
अब जब टूट गया है
सम्बन्धो का सेतु
तो कैसे मिल सकते हैं भला
प्रेम लिए दो किनारे !!
ये कहने को.....
अब जब टूट गया है
सम्बन्धो का सेतु
तो कैसे मिल सकते हैं भला
प्रेम लिए दो किनारे !!
यथार्थ के कठोर धरातल पर सहमते सकुचाते एहसासों की भीगी सी अभिव्यक्ति ! बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति.....
ReplyDeleteकल 08/अगस्त/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeletemukammal hai ... lajawab hai....tareefe-kabil :)
ReplyDeleteजिन अहसासों के जंगल में
ReplyDeleteगुस्से कि आग मैंने लगायी थी
वो सावन कि
रिमझिम बूंदो ने बुझा दी है !
पर अब कहाँ रहा उचित
ये कहने को.....बहुत सुन्दर प्रस्तुति।