मुड़ती गयी
चलती रही
बंद रास्ते अँधेरी गलियों के बीच
कभी किसी मोड़
तो कभी किसी चौक से गुज़रती रही
जिंदगी जैसे कोई तवायफ हो
खुशियाँ आई और बिखेर के जाती रही
रुकना फिर मेरी शान में नहीं
आदत रही अक्सर
तसल्लियों के टांको से
कटे-फटे आस को सिलने की
कांटे मेरी तकदीर का ओढ़ना-बिछौना रहे
रहा सवाल दर्द का
पत्थरो के सीने में उठी हलचल
मज़ाक का सबब हैं और कुछ नहीं...
मालूम नहीं मकसद
इस लव्ज़ से पहली बार रूबरू हूँ
मगर आखिर जीने कि वजह क्या हैं?
इन पहेलिओ की गर्माहट में
हल्का-हल्का सा महसूस होता हैं
कभी कभी
कि
शायद !
इक प्यास हैं मुझे भी
इक तलाश हैं मुझे भी !!
_______________परी ऍम 'श्लोक'
चलती रही
बंद रास्ते अँधेरी गलियों के बीच
कभी किसी मोड़
तो कभी किसी चौक से गुज़रती रही
जिंदगी जैसे कोई तवायफ हो
खुशियाँ आई और बिखेर के जाती रही
रुकना फिर मेरी शान में नहीं
आदत रही अक्सर
तसल्लियों के टांको से
कटे-फटे आस को सिलने की
कांटे मेरी तकदीर का ओढ़ना-बिछौना रहे
रहा सवाल दर्द का
पत्थरो के सीने में उठी हलचल
मज़ाक का सबब हैं और कुछ नहीं...
मालूम नहीं मकसद
इस लव्ज़ से पहली बार रूबरू हूँ
मगर आखिर जीने कि वजह क्या हैं?
इन पहेलिओ की गर्माहट में
हल्का-हल्का सा महसूस होता हैं
कभी कभी
कि
शायद !
इक प्यास हैं मुझे भी
इक तलाश हैं मुझे भी !!
_______________परी ऍम 'श्लोक'
बढ़िया रचना व लेखन , धन्यवाद !
ReplyDeleteInformation and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
आपकी इस रचना का लिंक दिनांकः 21 . 8 . 2014 दिन गुरुवार को I.A.S.I.H पोस्ट्स न्यूज़ पर दिया गया है , कृपया पधारें धन्यवाद !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
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