Saturday, August 16, 2014

इससे पहले ....

पहले जब कभी
तुम नाराज़ होते थे
तो अक्सर लगा मुझे
सम्भवता
मेरी ही गलती होगी
और
तुमसे हर बात की
क्षमा मांग लेती थी

किन्तु
अब इतने वर्षो में
हर दिन वही प्रतिक्रिया
तुम्हारा स्वभाव बन गयी
जो तुम्हारे बातो की
अहमियत गिराती गयी
खुद को ढाल लिया है मैंने 
तुम्हारे इस
अजीब गरीब अदा में
और
अपना वचन निभाती गयी


तुम्हे श्रेष्ठ बनाते बनाते
कदाचित मेरे ही भीतर
धीरे-धीरे गुण बढ़ता गया है ...

मुस्कुराने की जिद्द
और अब
बेफिक्र रहने की
आदि हो गयी हूँ मैं !!



___________परी ऍम 'श्लोक'

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