Wednesday, August 27, 2014

"रेत की तरह"

 
****तुम्हे पाकर मुट्ठियाँ बंद कर ली थी हमने 'श्लोक' ****
******मगर नसीब से रेत की तरह तुम फिसलते चले गए
!!*****

__________परी ऍम 'श्लोक'

2 comments:

  1. तुम तो ज़रा ठहर जाते
    मेरे नसीब को माकूल
    जवाब दे देते ...
    बहुत उम्दा...

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  2. जीवन भी तो ऐसे ही फिसल जाता है ...

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