छुप जाए जब पीड़ा गालो की लाली में
आँखों से बहता झरना फिर कौन देखता है
आँखों से बहता झरना फिर कौन देखता है
खुद का पेट भरा हो फिर किसी से क्या मतलब
भूखे गरीब को दाना पानी कौन पूछता हैं
भूखे गरीब को दाना पानी कौन पूछता हैं
जब तक मिले न कुर्सी तब तक रोज़ भटकता है
नेता बनकर जनता कि फिर कौन सोचता है
नेता बनकर जनता कि फिर कौन सोचता है
बड़े-बड़े नेताओ की पार्टी में जाम लगाए जाते हैं
मुजफ्फरनगर की हिंसा का हाल कौन पूछता हैं
मुजफ्फरनगर की हिंसा का हाल कौन पूछता हैं
निर्भया के लाश की भी अस्मत उतारी जाती है
नारी को नारायणी बना कर अब कौन पूजता है
बेरोज़गारी..बेकारी..घूस दो तो मिले नौकरी सरकारी
सरकारी दफ्तरों में लोकपाल बिल कौन पूछता हैं
नारी को नारायणी बना कर अब कौन पूजता है
बेरोज़गारी..बेकारी..घूस दो तो मिले नौकरी सरकारी
सरकारी दफ्तरों में लोकपाल बिल कौन पूछता हैं
लौट आया खाली बाजार से भाव छूते देख आसमान
जेब गरम है या ठंडी महंगाई हररोज़ पूछती है
जेब गरम है या ठंडी महंगाई हररोज़ पूछती है
बहुत सुना था मैंने भी अच्छे दिन आने वाले हैं
बुरे दिनों में ऐसे वहमो से इंसान रोज़ जूझता हैं
बुरे दिनों में ऐसे वहमो से इंसान रोज़ जूझता हैं
-------------------------परी ऍम 'श्लोक'
यथार्थ को रचना के आइने में दिखाती सुन्दर प्रस्तुति !
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचना है, बधाई आपको नवाकार
ReplyDeleteलौट आया खाली बाजार से भाव छूते देख आसमान
ReplyDeleteजेब गरम है या ठंडी महंगाई हररोज़ पूछता है
बहुत सुना था मैंने भी अच्छे दिन आने वाले हैं
बुरे दिनों में ऐसे वहमो से इंसान रोज़ जूझता हैं
आपके ब्लॉग पर अब तक मेरी सबसे पसंदीदा रचना हो गयी यह।
सुपर सटीक लिखा है आपने।
सादर
यथार्थ भाव लिए सार्थक पंक्तियाँ
ReplyDeleteखुद का पेट भरा हो फिर किसी से क्या मतलब
ReplyDeleteभूखे गरीब को दाना पानी कौन पूछता हैं
जब तक मिले न कुर्सी तब तक रोज़ भटकता है
नेता बनकर जनता कि फिर कौन सोचता है
कटु सत्य को उकेरती सार्थक रचना !
सावन का आगमन !
: महादेव का कोप है या कुछ और ....?
बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
ReplyDeleteदेखते रहिये , सहनशीलता सब से बड़ा गुण है , पिछले साठ साल भी हमने वादे ही ख़रीदे हैं , क्योंकि हमारे मुल्क की राजनीतिक धरती को ये फसल ही ज्यादा मुफीद है
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति..
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