Monday, August 4, 2014

छुप जाए जब पीड़ा गालो की लाली में

छुप जाए जब पीड़ा गालो की लाली में
आँखों से बहता झरना फिर कौन देखता है
 
खुद का पेट भरा हो फिर किसी से क्या मतलब
भूखे गरीब को दाना पानी कौन पूछता हैं
 
जब तक मिले न कुर्सी तब तक रोज़ भटकता है
नेता बनकर जनता कि फिर कौन सोचता है
 
बड़े-बड़े नेताओ की पार्टी में जाम लगाए जाते हैं
मुजफ्फरनगर की हिंसा का हाल कौन पूछता हैं
 
निर्भया के लाश की भी अस्मत उतारी जाती है
नारी को नारायणी बना कर अब कौन पूजता है

बेरोज़गारी..बेकारी..घूस दो तो मिले नौकरी सरकारी
सरकारी दफ्तरों में लोकपाल बिल कौन पूछता हैं
 
लौट आया खाली बाजार से भाव छूते देख आसमान
जेब गरम है या ठंडी महंगाई हररोज़ पूछती है
 
बहुत सुना था मैंने भी अच्छे दिन आने वाले हैं
बुरे दिनों में ऐसे वहमो से इंसान रोज़ जूझता हैं
 
 
 
-------------------------परी ऍम 'श्लोक'
 

8 comments:

  1. यथार्थ को रचना के आइने में दिखाती सुन्दर प्रस्तुति !

    ReplyDelete
  2. बहुत ही सुंदर रचना है, बधाई आपको नवाकार

    ReplyDelete
  3. लौट आया खाली बाजार से भाव छूते देख आसमान
    जेब गरम है या ठंडी महंगाई हररोज़ पूछता है

    बहुत सुना था मैंने भी अच्छे दिन आने वाले हैं
    बुरे दिनों में ऐसे वहमो से इंसान रोज़ जूझता हैं

    आपके ब्लॉग पर अब तक मेरी सबसे पसंदीदा रचना हो गयी यह।
    सुपर सटीक लिखा है आपने।

    सादर

    ReplyDelete
  4. यथार्थ भाव लिए सार्थक पंक्तियाँ

    ReplyDelete
  5. खुद का पेट भरा हो फिर किसी से क्या मतलब
    भूखे गरीब को दाना पानी कौन पूछता हैं

    जब तक मिले न कुर्सी तब तक रोज़ भटकता है
    नेता बनकर जनता कि फिर कौन सोचता है

    कटु सत्य को उकेरती सार्थक रचना !
    सावन का आगमन !
    : महादेव का कोप है या कुछ और ....?

    ReplyDelete
  6. बहुत सुन्दर प्रस्तुति..

    ReplyDelete
  7. देखते रहिये , सहनशीलता सब से बड़ा गुण है , पिछले साठ साल भी हमने वादे ही ख़रीदे हैं , क्योंकि हमारे मुल्क की राजनीतिक धरती को ये फसल ही ज्यादा मुफीद है

    ReplyDelete
  8. बहुत सुन्दर प्रस्तुति..

    ReplyDelete

मेरे ब्लॉग पर आपके आगमन का स्वागत ... आपकी टिप्पणी मेरे लिए मार्गदर्शक व उत्साहवर्धक है आपसे अनुरोध है रचना पढ़ने के उपरान्त आप अपनी टिप्पणी दे किन्तु पूरी ईमानदारी और निष्पक्षता के साथ..आभार !!