हर ज़र्रा रोया था हर शब मैं बोखलाई थी
मैंने गिन-गिन के तारे तनहा रात बितायी थी
बड़ी मुश्किल से तुझको भुलाया करती 'श्लोक'
मगर हर दफा तेरी याद दबे पाँव चली आई थी
मेरी जात से जुड़ने का तेरा इंकार भी रहा था
फिर भी तेरी रूह मेरे खातिर ही छटपटाई थी
शायद तू वो मिटाने में आज तक नाकाम रहा
जो निशां मैं तेरे दिल-ओ-जहन पे छोड़ आई थी
__________परी ऍम 'श्लोक'
खूबसूरत अलफ़ाज़
ReplyDeleteखूबसूरत एहसास परी जी !
ReplyDeleteसादर
सुंदर ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर अहसास लफ्जों का.
ReplyDeleteवाह !! मंगलकामनाएं आपको !
ReplyDeleteइस पोस्ट की चर्चा, रविवार, दिनांक :- 31/08/2014 को "कौवे की मौत पर"चर्चा मंच:1722 पर.
ReplyDeleteसुन्दर भावाभिव्याक्ति !
ReplyDeleteगणपति वन्दना (चोका )
हमारे रक्षक हैं पेड़ !
जो निशां मैं तेरे दिल औ जहन पर छोड आई थी--
ReplyDeleteसुंदर भावों में कही विरह की पीडा--विछोह का दंश.
सुन्दर अहसासों से भरी रचना
ReplyDeleteOutstanding poetry . No words for praising you . best wishes .
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