Friday, August 29, 2014

"जो निशां मैं तेरे दिल-ओ-जहन पे छोड़ आई थी"


 
हर ज़र्रा रोया था हर शब मैं बोखलाई थी
मैंने गिन-गिन के तारे तनहा रात बितायी थी

बड़ी मुश्किल से तुझको भुलाया करती 'श्लोक'
मगर हर दफा तेरी याद दबे पाँव चली आई थी

मेरी जात से जुड़ने का तेरा इंकार भी रहा था
फिर भी तेरी रूह मेरे खातिर ही छटपटाई थी

शायद तू वो मिटाने में आज तक नाकाम रहा
जो निशां मैं तेरे दिल-ओ-जहन पे छोड़ आई थी

__________परी ऍम 'श्लोक'

10 comments:

  1. खूबसूरत अलफ़ाज़

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  2. खूबसूरत एहसास परी जी !

    सादर

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  3. बहुत सुंदर अहसास लफ्जों का.

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  4. वाह !! मंगलकामनाएं आपको !

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  5. इस पोस्ट की चर्चा, रविवार, दिनांक :- 31/08/2014 को "कौवे की मौत पर"चर्चा मंच:1722 पर.

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  6. जो निशां मैं तेरे दिल औ जहन पर छोड आई थी--
    सुंदर भावों में कही विरह की पीडा--विछोह का दंश.

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  7. सुन्दर अहसासों से भरी रचना

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  8. Outstanding poetry . No words for praising you . best wishes .

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