राज़ दफ़न है सीने में
जो कहना भी जरुरी है
मुझे पूरी भी करनी है
वो जो दास्तान अधूरी है
मगर कहें तो कहें कैसे ?
तू मशगूल है अपने मसले में
मैं अपने दिल से आहत हूँ
सोचती हूँ की तू ही कहदे
की मैं तेरी आखिरी चाहत हूँ
बस इसी ताका-ताकी में 'श्लोक'
रह जाते है वाजिब एहसास
तुमसे साँझा करने को
और फिर अपने जज्बात
तसल्ली से कहने को
ढूंढती हूँ तुम्हारे साथ
बेफिक्री के चंद लम्हे
मगर कहें तो कहें कैसे ?
कभी वक़्त तेरे पास नहीं
तो कभी वक़्त मेरे पास नहीं !!
____________________परी ऍम 'श्लोक'
behatareen, khubsurat aur chhu le jo dil ko....
ReplyDeleteखूबशूरत गज़ल
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteसादर
वाह ! बहुत ही सुन्दर !
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