चलो
ले चलूँ मैं तुम्हे
दूर
कहीं.......
उन
घनी वादियों में
सूरज
कि तपन से
पेड़
कि छाँव में
इस
ज़मी से उस फलक तक
चाँद
कि चमक तक
चलो
ले चलूँ मैं तुम्हे...
खुशियो
की बारात हो जहाँ
हँसी
का संगीत हो
जहाँ
स्नेह की चादर हो
सकून
का बिस्तर हो
जहाँ
मैं हूँ और बस तुम हो
संग
तेरी प्रीत हो
चलो
ले चलूँ में तुम्हे ..
जहाँ
दरमियान न तूफ़ान हो
जिस
तरफ भी देखूं
तेरा
चेहरा ही आइना हो
जहाँ
जुदाई का न नाम हो
प्यार
से हर काम हो
बस
यही मेरी आरज़ू है
क्या
तेरी आरज़ू है ?
आओ
!
हर
बुरी नज़र से छिपाकर
अपने
दिल में बसाकर
यहाँ
से दूर कहीं.......
चलो
ले चलूँ मैं तुम्हे !!
khoobsurat
ReplyDeleteबहुत खूब ... दिल में बसा कर तो ऐसे भी कहीं ले जाएँ ...
ReplyDeleteलाजवाब ख्याल ...
umda peshkash...
ReplyDeleteबेहद कोमल खयालात और जीवंत अभिव्यक्ति ! अति सुन्दर !
ReplyDeleteसुन्दर रचना रची है आप ने
ReplyDeleteAap sabhi se niranttar milati in utsaahvardhak tipnniyo ke liye tahe dil se aabhaari hun .... Behad shukriyaa :)
ReplyDeleteबहुत ख़ूब..
ReplyDeleteजहाँ मैं हूँ और बस तुम हो
संग तेरी प्रीत हो....
बहुत खूब !
ReplyDeleteकृपया मेरे ब्लॉग पर आएं !
बाह क्या बात है परी जी बहुत खूव
ReplyDeleteचलो ले चलूँ मैं तुम्हे...
खुशियो की बारात हो जहाँ
हँसी का संगीत हो
जहाँ स्नेह की चादर हो
सकून का बिस्तर हो
जहाँ मैं हूँ और बस तुम हो
संग तेरी प्रीत हो
चलो ले चलूँ में तुम्हे ..
ReplyDeleteजहाँ दरमियान न तूफ़ान हो
जिस तरफ भी देखूं
तेरा चेहरा ही आइना हो
जहाँ जुदाई का न नाम हो
प्यार से हर काम हो
बहुत सुन्दर