आओ !
आज मैं तुम्हे यकीन दिला दूँ
अपनी बेपनाह मोहोब्बत का
रखो अपने दिल का
एहसासो से लदबद पन्ना खोल कर
इसपर मैं अपने नाम का हस्ताक्षर करदूँ
मोहर लगा कर प्रमाणित कर दूँ
घोषित करदूँ तुम्हारी धड़कनो पर
अपनी हुकूमत
बन जाऊँ तुम्हारी मल्लिका......
तुम कबूल करो मुझे
और
मैं तुम्हे कबूल करती हूँ
आओ !
अपने इश्क़ कि पाकीज़गी का
मैं तुम्हे बेझिझक साबूत देती हूँ
तुम्हारे ज़ज़्बातो के हाथो
अपनी हर साँस का सौदा देती हूँ !!
________©परी ऍम 'श्लोक'
तुम्हारे ज़ज़्बातो के हाथो
ReplyDeleteअपनी हर साँस का सौदा देती हूँ !!
...वाह...लाज़वाब अहसास और उनकी प्रभावी अभिव्यक्ति...
सांसों का सौदा भी कर डाला .....सुन्दर और सहज
ReplyDeletebahut sundr rchna
ReplyDeletemy recent poem मुफलिसी
परी जी,
ReplyDeleteआप तो पुरुष समाज के विरूद्ध खड़ी थीं,आज क्या हो गया?
सशक्त रचना पर बहुत बधाई.
Meri ladayi sirf gaalat niyat galat soch aur aapraadh se hai ... Kisi vyakti vishesh se meri ladaayi nhi.. haan kintu aisi soch ko palaane waale aur isko badhawa dene waalo se mujhe sadev hi ghrna hai ... Ek sach wo bhi hai jiska main virodh kaarti hun karti rahungi.. Ek sach ye bhi hai jiska main sammaan karti hun karti rahungi... Aapki utsaahvardhak tippan hetu hardik aabhaar !!
ReplyDeleteबढ़िया :)
ReplyDeleteसुन्दर कोमल भावपूर्ण रचना ! बहुत बढ़िया !
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