मैंने
जिंदगी को क्या न दिया
हर कदम हज़ार तौफ़ो से नवाज़ा
ताकि
ये बहलता रहे.. मशगूल रहे
भूले
से भी कभी
याद
न करे तुझे
फुरसत ही न मिले इसे
गुज़रे लम्हों के
भूतिया दरवाज़े को खोलने की
वजहों को खुराक में देती रही
कि कुछ चीज़े हमारे
दायरे में नहीं होती होती
हम उस पर शिकंजा नहीं कस सकते
नहीं मिलता कभी-कभार
कुछ हमारे चाहने और न चाहने से
बल्कि कुछ फैसले नियति करती है
और शायद !
ये भी पहले से ही तय था
उसे पाना और फिर उसे खो देना !!
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ताकि
ये हर शब जी सके
मैंने
तमाम बंधनो में
बाँध
दिया इसे
ताकि
इस दहलीज़ के पार
जाने
कि सोच भी न सके
इसकी कसक घूँट भर -भर
खुद पीती रही रात -दिन
मगर
सारी कोशिशे
जिंदगी
की तपती रेत पर
किसी
बूँद की तरह गिरी
और
फिर झुलस गई
जिंदगी
कभी समझी ही नहीं
जो
मैं इसे कब से
समझाना
चाहती हूँ
या
तो फिर
ये जान कर भी
अंजान
बन रही है
दायरे में नहीं होती होती
हम उस पर शिकंजा नहीं कस सकते
नहीं मिलता कभी-कभार
कुछ हमारे चाहने और न चाहने से
बल्कि कुछ फैसले नियति करती है
और शायद !
ये भी पहले से ही तय था
उसे पाना और फिर उसे खो देना !!
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परी ऍम. 'श्लोक'
बहुत ही सुंदर रचना है आपकी
ReplyDeleteनियति के आगे बस किसका चला है
श्री हरि ने तो गीता में भी उपदेश दिया
जो भी होता है अच्छा ही होता है और
जो भी होगा सदा ही अच्छा होगा
आशु
आपकी लिखी रचना शनिवार 18 अक्टूबर 2014 को लिंक की जाएगी........... http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
ReplyDeleteआपने बहुत सुन्दर लिका हैँ। आपका ब्लॉग http://safaraapka.blogspot.in/ पर हैँ। मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
ReplyDeletekya u nahi lag rahaa jse har kavita dil ki gaharaiyon se nikal rahi hai....bhut sundar..dil wali duniya hi sabase khubsurat hoti hai..
ReplyDeleteसुन्दर विचार कणिका अन्विति बेहतर शब्द विधान। सुन्दर विचार कणिका अन्विति बेहतर शब्द विधान। हाँ यही प्रारब्ध है पुरुषार्थ से इसका दंश झेला जा सकता है भविष्य बेहतर लिखा जा सकता है।
ReplyDeleteसबसे पहले तो बधाई स्वीकार करें आपकी लिखावट बहुत ही सुन्दर है ! मोती से खूबसूरत अक्षरों में इतनी सुन्दर नज़्म पढ़ कर दिल खुश हो गया ! आपकी लेखनी की कायल हूँ मैं !
ReplyDeleteमगर सारी कोशिशे
ReplyDeleteजिंदगी की तपती रेत पर
किसी बूँद की तरह गिरी
और फिर झुलस गई
खूबसूरत शब्द