Tuesday, October 28, 2014

फ़ातेहा पढ़ो क़ाज़ी....

खुदा को कई बार ...खुदा बना कर देखा
हासिल कुछ न हुआ
आज मैं खुद ही खुदा हूँ
और ये मेरी गुजारिश है
कि ..

फ़ातेहा पढ़ो क़ाज़ी
मुझे इस पुराने लिबास को
अब अलविदा कहना है
कि बस बहुत हुआ
जिल्लतों का दौर..ये खौफ का मंज़र
दर्द कि दर्दनाक दास्तान का चलन
 
ये मेरे मिज़ाज़ कि नर्मियाँ  ....
जो मुझे कदमो पे ले आयी थी 
मुझे अब ऊपर उठना है इस ज़मी से
यहाँ नहीं यहाँ से कहीं दूर फलक पर जाना है
सितारा बनना है और फिर टूट जाना है
 
खंडर बने इस जिस्म में कोई हरकत नहीं होती  
मरे पड़े हैं ख्वाब
बुझे उल्फतो के दिये के आस-पास
नन्हे - नन्हे कीड़े मकौड़ों कि तरह
दिल ने इक अरसे से धड़कना बंद कर दिया है
मेरे जीने का कोई सबूत नहीं है 
 
तुम  
फ़ातेहा पढ़ो क़ाज़ी
और फिर डालो मिट्टी
मेरी साँस लेती हुई कब्र पर
फूल से मेरा नाता नहीं
बेशक कांटे उगा जाओ मेरी कब्र पे 
पर उन्हें ये हक़ नहीं... कि वो आँसू भी बहाने आयें
जला दिल और जलाने आयें

बस अब दफन करो
फैसलों कि बेवफाई का बस्ता टाँगे
बेवा बेकार बेरंग जिंदगी के तमाशे को 

और
मुझे नया जन्म लेने दो
सकून भर किलकारियों के साथ
हाँ ! मुझे बस महसूस करना है
शफा-ए-जिंदगी को 
नया-नया सा सबकुछ हो जहाँ
वो ताज़गी नयी तिश्नगी के साथ
हो बहारें जहाँ नयी जिंदगी के साथ
 
जबतक न हो कोई अंजाम
इस बेबाक आरज़ू का
तब तक तुम
फ़ातेहा पढ़ो क़ाज़ी....
 
_____________________
© परी ऍम 'श्लोक'

20 comments:

  1. तुम
    फ़ातेहा पढ़ो क़ाज़ी
    और फिर डालो मिट्टी
    मेरी साँस लेती हुई कब्र पर
    फूल से मेरा नाता नहीं
    बेशक कांटे उगा जाओ मेरी कब्र पे
    पर उन्हें ये हक़ नहीं... कि वो आँसू भी बहाने आयें
    जला दिल और जलाने आयें

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  2. बेहद भावपूर्ण मर्मस्पर्शी और करीने से शब्द सज्जा
    लाजवाब

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  3. कितना भावपूर्ण रचा है आप ने इस रचना को....सोचने को विवश करती एक सशक्त रचना.....
    बेहद उम्दा और बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
    नयी पोस्ट@आंधियाँ भी चले और दिया भी जले
    नयी पोस्ट@श्री रामदरश मिश्र जी की एक कविता/कंचनलता चतुर्वेदी

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी है और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा - बुधवार- 29/10/2014 को
    हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः 40
    पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें,

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  5. फ़ातेहा पढ़ो क़ाज़ी
    मुझे इस पुराने लिबास को
    अब अलविदा कहना है..... सुन्दर! दिल की गहराईयों में उतरने वाली लाइनें! आदरणीया परी जी किसी शायर ने लिखा भी है,
    आज फिर आँख में नमी सी है,
    आज फिर आप की कमी सी है,
    दफ़न कर दो हमें की सांस भी ना ले पाएं,
    नब्ज कुछ देर से थमीं सी है. पुनः आभार आदरणीया परी जी!

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  6. तारिफो की तलाश मे भटकते शब्द ।
    बहुत ही उम्दा रचना ।

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  7. आह..... बहुत ही संवेदनशील लिख गयी आप तो..... !!!!

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  8. इतना प्रभावशाली लिखा है की दिल थम सा गया .... "इसी जनम में नये जनम होते है हर बार जब हम दफना आते हैं पुराने गुब्बार"....

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  9. ओह..!बेदर्द करती दर्द की दास्ताँ...

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  10. भीतर गहरे तक उतर जाने वाली कविता -विश्लेषण करना इसके साथ अन्याय होगा ,
    अनुभूति में डूबना ही काफ़ी है !

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  11. कहाँ से उपजी ये दर्दनाक सुन्दर भावनाओं का उत्स ,अति सुन्दर …।

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  12. कल 30/अक्तूबर/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद !

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  13. पर उन्हें ये हक़ नहीं... कि वो आँसू भी बहाने आयें
    जला दिल और जलाने आयें
    बहुत खूब लिखा है |

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  14. और
    मुझे नया जन्म लेने दो
    सकून भर किलकारियों के साथ
    हाँ ! मुझे बस महसूस करना है
    शफा-ए-जिंदगी को
    नया-नया सा सबकुछ हो जहाँ
    वो ताज़गी नयी तिश्नगी के साथ
    हो बहारें जहाँ नयी जिंदगी के साथ
    आह..... बहुत ही संवेदनशील लिख गयी आप तो

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  15. बस अब दफन करो

    फैसलों कि बेवफाई का बस्ता टाँगे

    बेवा बेकार बेरंग जिंदगी के तमाशे को
    ....बहुत मर्मस्पर्शी अहसास...अदभुत प्रस्तुति...

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  16. Tremendous feelings Pari.It touched my heart.

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