खुदा
को कई बार ...खुदा
बना कर देखा
हासिल
कुछ न हुआ
आज
मैं खुद ही खुदा हूँ
और
ये मेरी गुजारिश है
कि
..
फ़ातेहा
पढ़ो क़ाज़ी
मुझे
इस पुराने लिबास को
अब
अलविदा कहना है
कि
बस बहुत हुआ
जिल्लतों
का दौर..ये
खौफ का मंज़र
दर्द
कि दर्दनाक दास्तान का चलन
ये मेरे मिज़ाज़ कि नर्मियाँ ....
जो मुझे कदमो पे ले आयी थी
मुझे अब ऊपर उठना है इस ज़मी से
यहाँ नहीं यहाँ से कहीं दूर फलक पर जाना है
सितारा बनना है और फिर टूट जाना है
खंडर बने इस जिस्म में कोई हरकत नहीं होती
मरे पड़े हैं ख्वाब
बुझे उल्फतो के दिये के आस-पास
नन्हे - नन्हे कीड़े मकौड़ों कि तरह
दिल ने इक अरसे से धड़कना बंद कर दिया है
नन्हे - नन्हे कीड़े मकौड़ों कि तरह
दिल ने इक अरसे से धड़कना बंद कर दिया है
मेरे जीने का कोई सबूत नहीं है
तुम
फ़ातेहा
पढ़ो क़ाज़ी
और
फिर डालो मिट्टी
मेरी
साँस लेती हुई कब्र पर
फूल
से मेरा नाता नहीं
बेशक
कांटे
उगा जाओ मेरी कब्र पे
पर
उन्हें ये हक़ नहीं... कि वो
आँसू भी बहाने आयें
जला दिल और जलाने आयें
बस
अब दफन करो
फैसलों
कि बेवफाई का बस्ता टाँगे
बेवा
बेकार बेरंग जिंदगी के तमाशे को
और
मुझे
नया जन्म लेने दो
सकून
भर किलकारियों के साथ
हाँ
! मुझे बस महसूस करना है
शफा-ए-जिंदगी
को
नया-नया
सा सबकुछ हो जहाँ
वो
ताज़गी नयी तिश्नगी के साथ
हो
बहारें जहाँ नयी जिंदगी के साथ
जबतक न हो कोई अंजाम
इस बेबाक आरज़ू का
तब तक तुम
फ़ातेहा पढ़ो क़ाज़ी....
इस बेबाक आरज़ू का
तब तक तुम
फ़ातेहा पढ़ो क़ाज़ी....
_____________________
© परी ऍम 'श्लोक'
तुम
ReplyDeleteफ़ातेहा पढ़ो क़ाज़ी
और फिर डालो मिट्टी
मेरी साँस लेती हुई कब्र पर
फूल से मेरा नाता नहीं
बेशक कांटे उगा जाओ मेरी कब्र पे
पर उन्हें ये हक़ नहीं... कि वो आँसू भी बहाने आयें
जला दिल और जलाने आयें
waah..bahut badhiya
ReplyDeleteसुन्दर और भावप्रणव रचना।
ReplyDeleteबेहद भावपूर्ण मर्मस्पर्शी और करीने से शब्द सज्जा
ReplyDeleteलाजवाब
बहुत सुंदर !
ReplyDeleteकितना भावपूर्ण रचा है आप ने इस रचना को....सोचने को विवश करती एक सशक्त रचना.....
ReplyDeleteबेहद उम्दा और बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
नयी पोस्ट@आंधियाँ भी चले और दिया भी जले
नयी पोस्ट@श्री रामदरश मिश्र जी की एक कविता/कंचनलता चतुर्वेदी
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी है और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा - बुधवार- 29/10/2014 को
हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः 40 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें,
फ़ातेहा पढ़ो क़ाज़ी
ReplyDeleteमुझे इस पुराने लिबास को
अब अलविदा कहना है..... सुन्दर! दिल की गहराईयों में उतरने वाली लाइनें! आदरणीया परी जी किसी शायर ने लिखा भी है,
आज फिर आँख में नमी सी है,
आज फिर आप की कमी सी है,
दफ़न कर दो हमें की सांस भी ना ले पाएं,
नब्ज कुछ देर से थमीं सी है. पुनः आभार आदरणीया परी जी!
तारिफो की तलाश मे भटकते शब्द ।
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा रचना ।
आह..... बहुत ही संवेदनशील लिख गयी आप तो..... !!!!
ReplyDeleteइतना प्रभावशाली लिखा है की दिल थम सा गया .... "इसी जनम में नये जनम होते है हर बार जब हम दफना आते हैं पुराने गुब्बार"....
ReplyDeleteओह..!बेदर्द करती दर्द की दास्ताँ...
ReplyDeleteभीतर गहरे तक उतर जाने वाली कविता -विश्लेषण करना इसके साथ अन्याय होगा ,
ReplyDeleteअनुभूति में डूबना ही काफ़ी है !
कहाँ से उपजी ये दर्दनाक सुन्दर भावनाओं का उत्स ,अति सुन्दर …।
ReplyDeleteकल 30/अक्तूबर/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद !
पर उन्हें ये हक़ नहीं... कि वो आँसू भी बहाने आयें
ReplyDeleteजला दिल और जलाने आयें
बहुत खूब लिखा है |
और
ReplyDeleteमुझे नया जन्म लेने दो
सकून भर किलकारियों के साथ
हाँ ! मुझे बस महसूस करना है
शफा-ए-जिंदगी को
नया-नया सा सबकुछ हो जहाँ
वो ताज़गी नयी तिश्नगी के साथ
हो बहारें जहाँ नयी जिंदगी के साथ
आह..... बहुत ही संवेदनशील लिख गयी आप तो
दर्द की दास्ताँ.
ReplyDeleteबस अब दफन करो
ReplyDeleteफैसलों कि बेवफाई का बस्ता टाँगे
बेवा बेकार बेरंग जिंदगी के तमाशे को
....बहुत मर्मस्पर्शी अहसास...अदभुत प्रस्तुति...
Tremendous feelings Pari.It touched my heart.
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