आज मीनाक्षी दीदी अपने नन्हे-मुन्हे बच्चो मयंक और अनन्या के साथ हमें खूबसूरत यादो का तौफा देकर अपने ससुराल वापिस रवाना हो गयी ! कुछ दिन पहले ही हमारे साथ यानी अपने मायके में रहने आई थी !
पता ही नही चला कब ये वक़्त इतनी तेज़ी से निकल गया और छूट गया इतना मस्तमौला सा वो वक़्त ! पूछो न मैं तो उन बच्चो में इतनी मशगूल हो जाती थी सुबह-शाम की सारी टेंशन फुर्र हो जाती थी !
वाकई बहुत खुश थी इनदिनों मैं पर उनके जाने पर बहुत दुःख हुआ पर वही न कितने दिन रह सकती थी वो हमारे साथ अब उनकी अपनी इक गृहस्थी है जिसकी नायिका हैं वो..
आज जब उनको ट्रैन पर बिठाया और ट्रैन के बाहर २ मिनट तक खड़ी होकर खिड़की से बच्चो व दीदी को निहारती रही उसके बाद ट्रैन अपनी मंज़िल के लिए चल पड़ी..मैं बस देखती रही ..तो बस क्या था ?उस वक़्त जो तकलीफ मैंने महसूस किया.... वही शब्दों में ढाल रही हूँ !
बिल्कुल सच कहा आपने इन पंक्तियों में
ReplyDeleteसुंदर शब्द !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी है और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा - बृहस्पतिवार- 30/10/2014 को
हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः 41 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें,
रिक्तता के अहसास को बड़ी खूबसूरती से बयान किया है ! बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteशब्द और एहसास अक्सर मेल नहीं खाते हैं
ReplyDeleteएहसास गहरा हो तो शब्द निरुत्तर
शब्द बोले तो एहसास निशब्द
आप की रचना शब्द और एहसास दोनों का बेहतरीन मेल है। बधाई एक और सुन्दर रचना के लिए ।