शरद की चाँद रात में
अब वो शीतलता वो नरमी
कभी महसूस नहीं होती
तारे टूटते तो हैं आज भी
पर मैं अब मनोतियां नहीं माँगती
सुबह की रोशनी
रोशनदानियो से अंदर आकर
जाने कहाँ गायब हो जाती है
दहलीज़ से भीतर तक व्याप्त है
बेउमीदी का काला घनघोर अँधेरा
मेरे साये मुझसे
दिन में भी छिपा करते हैं
कभी-कभार फिर से
जीने की कोशिश में
मुरझाये हुए
तुम्हारे दिए खत
खोलती हूँ पढ़ने के लिए
पर अब उसमे लिखे शब्दों के रंग
उड़ गए हैं
स्याही फ़ैल गयी है
पन्नें पीले पड़ गए हैं
उजाड़ हो गया है
हर शब्द का मायना....उसके भाव
विरह के चंगुल में फसकर
बदल गयी हैं
हमारे प्रेम की परिभाषा
अब न आँखों में
वो तसल्लियों भरी नींद है
न ही नींदों के
आकाश में सपनो का पंछी
तमन्नायें बेवा हो भटकती हैं
वक़्त ने शिकार कर लिया है
मेरी अट्हासो का
बस पूछो न बचाते-बचाते भी
जाने कब.....
जिंदगी इक व्यवस्था की तरह पलट गयी
इसके तहो में दब कर मर गयी
तुम्हारी प्रेमिका !!
_____________©परी ऍम 'श्लोक'
अब वो शीतलता वो नरमी
कभी महसूस नहीं होती
तारे टूटते तो हैं आज भी
पर मैं अब मनोतियां नहीं माँगती
सुबह की रोशनी
रोशनदानियो से अंदर आकर
जाने कहाँ गायब हो जाती है
दहलीज़ से भीतर तक व्याप्त है
बेउमीदी का काला घनघोर अँधेरा
मेरे साये मुझसे
दिन में भी छिपा करते हैं
कभी-कभार फिर से
जीने की कोशिश में
मुरझाये हुए
तुम्हारे दिए खत
खोलती हूँ पढ़ने के लिए
पर अब उसमे लिखे शब्दों के रंग
उड़ गए हैं
स्याही फ़ैल गयी है
पन्नें पीले पड़ गए हैं
उजाड़ हो गया है
हर शब्द का मायना....उसके भाव
विरह के चंगुल में फसकर
बदल गयी हैं
हमारे प्रेम की परिभाषा
अब न आँखों में
वो तसल्लियों भरी नींद है
न ही नींदों के
आकाश में सपनो का पंछी
तमन्नायें बेवा हो भटकती हैं
वक़्त ने शिकार कर लिया है
मेरी अट्हासो का
बस पूछो न बचाते-बचाते भी
जाने कब.....
जिंदगी इक व्यवस्था की तरह पलट गयी
इसके तहो में दब कर मर गयी
तुम्हारी प्रेमिका !!
_____________©परी ऍम 'श्लोक'
YAH DARD MAHASUSANA HI APANE AAP MEIN EK .......
ReplyDeleteबहुत सुन्दर .
ReplyDeleteनई पोस्ट : इतिहास के बिखरे पन्ने : आंसुओं में डूबी गाथा
अंतर की पीड़ा हर शब्द में अभिव्यक्त हो रही है ! दर्द की प्रतिध्वनि से गुंजायमान सशक्त प्रस्तुति !
ReplyDeleteसुख आहत शान्त उमंगें
ReplyDeleteबेगार साँस ढोने में
यह हृदय समाधि बना हैं
रोती करुणा कोने में।
- प्रसाद.
ज़िंदगी की इस धूप में जलते हुए मन की पीड़ा को बखूबी बयान किया है आपने.
ReplyDeleteबेहतरीन पंक्तियाँ ... मर्मस्पर्शी
ReplyDeleteसुंदर रचना ! मन के आँगन में उम्मीद की किरण किसी न किसी रूप में साथ रहती है.
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