पर्दो
के बीच से झाँकना
उठाये
हुए दम्य की दीवार टापना
शक
कि सिलवटे पोछ आना
विश्वास
की चादर ओढ़ आना
कभी..जब
उठ जाए मन
तुम्हारे
गढ़े कठोर दायरों से
तो
उसके पार आना तुम....
फिर
कहीं
.. किसी
मोड़
पर मिलना मुझसे
जब
ढली हो शाम
महक
रही हो रात
तारे
टिमटिमा रहे हो
लिख
रहा हो सन्नाटा
जब
अपनी शान्त कथा...
अपने
गुस्से को चकमा देकर
छिपते-छिपाते
चले आना तुम
उन
लम्हों के मंज़र पर
जहाँ
बना कर अधूरा छोड़ आये थे
खूबसूरत
अहसासो का घरौंदा....
जहाँ
से हमने आरम्भ किया था
अद्भुत
अध्याय को गढ़ना....
और
तब
बुलाना मुझे
यथार्थ
के उस जज़ीरे पर
जहाँ
मेरा स्वप्न मसल गए थे तुम....
मालूम
है तुम्हे
तब
से अब तक
नजाने
कितने मौसम गुज़र गए
हम
जले भी ..सूखे भी ...बिखरे भी
किन्तु
प्रतीक्षा
के इस विशाल सागर में
आशाओ
को भिगोये रखा
आना
तुम जब एकांकी
मेरे
लिए विलाप करने लगे
और
तब छूना मेरी धड़कनो को
अपनी
मौजूदगी के शिनाख्त के लिए
उसमे
मच रहे शोर से
जान जाओगे तुम....
कि
मेरे लिए सदा से ही
कितना
अनमोल रहा है
तुम
...और तुम्हारा प्रेम !!
_____________________
© परी ऍम 'श्लोक'
बहुत ही बढ़िया परी जी
ReplyDeleteसादर
बिछुड़े हुए प्यार से मिलने की आस ....फिर वही तेरी प्यास! सुन्दर रचना! अभिनन्दन आप का
ReplyDeleteसुंदर रचना !
ReplyDeleteइस भावपूर्ण रचना के लिए बधाई
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ReplyDeleteranjish hi sahi dil hi dukhaane ke liye aa
aa fir se muJhe choD ke jaane ke liye aa
pehle se maraasim na sahee fir bhi kabhi to
rasmo rahe duniya hi nibhaane ke liye aa
kis kis ko bataayenge judaai ka sabab hum
tu muJh se khafa hai to zamaane ke liye aa
ab tak dil-e-khush seham ko tujh se hain ummeedeN
ye aakhri shamme bhi buJhaane ke liye aa
बहुत सुन्दर ! बहुत ही भावपूर्ण एवं कोमल रचना !
ReplyDeleteफिर
ReplyDeleteकहीं .. किसी
मोड़ पर मिलना मुझसे
जब ढली हो शाम
महक रही हो रात
तारे टिमटिमा रहे हो
लिख रहा हो सन्नाटा
जब अपनी शान्त कथा...
भावनाओं से ओतप्रोत बढ़िया शब्द
भाव्नाप्न का सैलाब उमड़ रहा हो जैसे ... लाजवाब ...
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