Wednesday, October 8, 2014

तुम ...और तुम्हारा प्रेम ...

 
गिराये हुए
पर्दो के बीच से झाँकना
उठाये हुए दम्य की दीवार टापना
शक कि सिलवटे पोछ आना
विश्वास की चादर ओढ़ आना
 
कभी..जब उठ जाए मन
तुम्हारे गढ़े कठोर दायरों से
तो उसके पार आना तुम....
 
फिर
कहीं .. किसी
मोड़ पर मिलना मुझसे
जब ढली हो शाम
महक रही हो रात
तारे टिमटिमा रहे हो
लिख रहा हो सन्नाटा
जब अपनी शान्त कथा...
 
अपने गुस्से को चकमा देकर
छिपते-छिपाते चले आना तुम
उन लम्हों के मंज़र पर
जहाँ बना कर अधूरा छोड़ आये थे
खूबसूरत अहसासो का घरौंदा....
जहाँ से हमने आरम्भ किया था
अद्भुत अध्याय को गढ़ना....
और
तब बुलाना मुझे
यथार्थ के उस जज़ीरे पर
जहाँ मेरा स्वप्न मसल गए थे तुम....
 
मालूम है तुम्हे
तब से अब तक
नजाने कितने मौसम गुज़र गए
हम जले भी ..सूखे भी ...बिखरे भी
किन्तु
प्रतीक्षा के इस विशाल सागर में
आशाओ को भिगोये रखा
  
आना तुम जब एकांकी
मेरे लिए विलाप करने लगे
और
तब छूना मेरी धड़कनो को
अपनी मौजूदगी के शिनाख्त के लिए
उसमे मच रहे शोर से
जान जाओगे तुम....
कि मेरे लिए सदा से ही 
कितना अनमोल रहा है
तुम ...और तुम्हारा प्रेम  !!
 
_____________________
© परी ऍम 'श्लोक'

8 comments:

  1. बहुत ही बढ़िया परी जी


    सादर

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  2. बिछुड़े हुए प्यार से मिलने की आस ....फिर वही तेरी प्यास! सुन्दर रचना! अभिनन्दन आप का

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  3. इस भावपूर्ण रचना के लिए बधाई

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  4. ranjish hi sahi dil hi dukhaane ke liye aa
    aa fir se muJhe choD ke jaane ke liye aa

    pehle se maraasim na sahee fir bhi kabhi to
    rasmo rahe duniya hi nibhaane ke liye aa

    kis kis ko bataayenge judaai ka sabab hum
    tu muJh se khafa hai to zamaane ke liye aa

    ab tak dil-e-khush seham ko tujh se hain ummeedeN
    ye aakhri shamme bhi buJhaane ke liye aa

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  5. बहुत सुन्दर ! बहुत ही भावपूर्ण एवं कोमल रचना !

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  6. फिर
    कहीं .. किसी
    मोड़ पर मिलना मुझसे
    जब ढली हो शाम
    महक रही हो रात
    तारे टिमटिमा रहे हो
    लिख रहा हो सन्नाटा
    जब अपनी शान्त कथा...
    भावनाओं से ओतप्रोत बढ़िया शब्द

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  7. भाव्नाप्न का सैलाब उमड़ रहा हो जैसे ... लाजवाब ...

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