इक बात है
जो जुबान की दहलीज़ पर आकर
अटक जाती है
खामोशियो की कुंडी में
और बस फड़फड़ाती रहती है
कश्मकश के पिंजरे में कैद
किसी बेसब्र परिंदे की तरह
सोचती हूँ
तुम्हे बिठा कर अपने पास
सारी हसरतें आज़ाद करदूँ
फिर जो भी हो देख लूँगी
पर
इतना आसान कहाँ है इश्क़..........
किसी ने सच ही कहा है
"आग का दरिया है
और डूब कर जाना है"
तुम बोलना शुरू करते हो कि
सुनते रहने की
आवारा आरज़ू जाग जाती है
अब तुम ही बताओ
कैसे कहूँ ?
रात भर जो
बेकाररियाँ साथ होती है
रात भर जो नींद छटपटाती है
रात भर जो भटकता है
तसव्वुर तेरी तलाश में
जो बात इक कदम भी
आगे बढ़ती नहीं
वो बात मुझे कहना है
बताओ न 'श्लोक'
आखिर तुम्हे कैसे कहूँ ??
____________
© परी ऍम. 'श्लोक'
जो जुबान की दहलीज़ पर आकर
अटक जाती है
खामोशियो की कुंडी में
और बस फड़फड़ाती रहती है
कश्मकश के पिंजरे में कैद
किसी बेसब्र परिंदे की तरह
सोचती हूँ
तुम्हे बिठा कर अपने पास
सारी हसरतें आज़ाद करदूँ
फिर जो भी हो देख लूँगी
पर
इतना आसान कहाँ है इश्क़..........
किसी ने सच ही कहा है
"आग का दरिया है
और डूब कर जाना है"
तुम बोलना शुरू करते हो कि
सुनते रहने की
आवारा आरज़ू जाग जाती है
अब तुम ही बताओ
कैसे कहूँ ?
रात भर जो
बेकाररियाँ साथ होती है
रात भर जो नींद छटपटाती है
रात भर जो भटकता है
तसव्वुर तेरी तलाश में
जो बात इक कदम भी
आगे बढ़ती नहीं
वो बात मुझे कहना है
बताओ न 'श्लोक'
आखिर तुम्हे कैसे कहूँ ??
____________
© परी ऍम. 'श्लोक'
bahut umda
ReplyDeleteबहुत सुन्दरता से प्रेमी मन की दुविधा को प्रस्तुत किया गया गया .......शानदार कविता
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति! आदरणीया परी जी!
ReplyDeleteधरती की गोद
सुनते रहने की
ReplyDeleteआवारा आरज़ू जाग जाती है
अब तुम ही बताओ- इतनी सुन्दर रचना को सराहे बिना कोई रह सकता है? बहुत सुन्दर ,बहुत बधाइयां - !
bahut badhiya ....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर "कश्मकश के पिंजरे में कैद किसी बेसब्र परिंदे की तरह"
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