सुनो
!
अबके
बहुत दिन गुजरे
तुमसे बात नहीं हुई
जाने खफा हो
या फिर
कहीं उलझे हो और.....
तुमसे बात नहीं हुई
जाने खफा हो
या फिर
कहीं उलझे हो और.....
इरादा बेवफाई का तो नहीं ?
उफ्फ देखा!
मौकापरस्त शक भी
दरवाजे पर आकर
दस्तक देने लगा है
मालूम नहीं कि
कहाँ-कहाँ भटक आतें हैं
पैदल ख्याल भी मेरे ...
सकून का कहीं पर
नाम-ओ-निशान तक नहीं
मौकापरस्त शक भी
दरवाजे पर आकर
दस्तक देने लगा है
मालूम नहीं कि
कहाँ-कहाँ भटक आतें हैं
पैदल ख्याल भी मेरे ...
सकून का कहीं पर
नाम-ओ-निशान तक नहीं
और तुम्हारी याद
दौड़-दौड़ कर
मन का पल्लू पकड़ती है
पहाड़ जैसे हो गए हैं पहर
और मैं चींटी सी
चढ़-चढ़ ढुलक जाती हूँ
दौड़-दौड़ कर
मन का पल्लू पकड़ती है
पहाड़ जैसे हो गए हैं पहर
और मैं चींटी सी
चढ़-चढ़ ढुलक जाती हूँ
सुन लो ....
बहुत हुआ
जिद्द का जिद्दी सिलसिला
अब या तो चले आओ
या फिर चले जाओ
ऐसे तो मुश्किल न करो तुम
जिंदगी मेरी ….
न डूब सकूँ न पार लगूँ
इस तरह अटकी रहे
तलातुम में कश्ती मेरी !
बहुत हुआ
जिद्द का जिद्दी सिलसिला
अब या तो चले आओ
या फिर चले जाओ
ऐसे तो मुश्किल न करो तुम
जिंदगी मेरी ….
न डूब सकूँ न पार लगूँ
इस तरह अटकी रहे
तलातुम में कश्ती मेरी !
________
©परी ऍम श्लोक
BAHUT SUNDAR.
ReplyDeleteबहतरीन जज्बाती पंक्तियाँ
ReplyDeleteआभार फोँट बढ़ाने के लिये आराम से पढा जा रहा है । सुंदर रचना ।
ReplyDeleteबहुत सुंदर एवं भावपूर्ण.
ReplyDeleteवाह ! क्या बात है ! बड़ी खूबी के साथ अपनी हर शिकायत बयान कर दी है ! बेहतरीन रचना !
ReplyDeleteऔर तुम्हारी याद
ReplyDeleteदौड़-दौड़ कर
मन का पल्लू पकड़ती है
पहाड़ जैसे हो गए हैं पहर
और मैं चींटी सी
चढ़-चढ़ ढुलक जाती हूँ ------- मन के भीतर जमी प्रेम की परतों और अनुभूतियों को उजागर करती प्रेम की मनभावन रचना ---- वाह बहुत सुंदर ---
शरद का चाँद -------
Utkrusht. . .bhawnao ko bahut hi satik tarike se shabdo mein peeroya hai. Feels proud to be the reader of your work. Truly wonderful. ..Baba bless!!!
ReplyDeleteऔर तुम्हारी याद
ReplyDeleteदौड़-दौड़ कर
मन का पल्लू पकड़ती है....
ये कमबख्त याद कभी पीछा नहीं छोड़ती....बहुत सुन्दर और प्रभावी रचना
वाह !! बेहतरीन....अहसास को रंग बहुत ही उम्दा शब्दों से दिया आपने ....कविता भावों से पूर्ण.....कितने सुंदर पञ्च दिए हैं आपने हर मोड़ पर...बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर प्रस्तुति पर परी जी !!
ReplyDeleteपरवीन जी आपकी आज की ये प्रस्तुती पढ़ कर जाने क्यूँ महसूस हुआ की आपकी प्रोफाईल पर कुछ देर रुकूँ और इस रचना की कशिश ने मुझे आपके प्रोफाई पर ला खड़ा किया , जाने क्यूँ इक उत्सुकता सी हुई सच में ये हुनर की शक्सियत के बारे में जाना जाए...की किस तरह इस लेखक की उत्पत्ति हुई | आपकी कलम का यूँ निरंतर चलना सच में बधाई की पात्र है |आपकी परवाज़ यूँ ही बनी रहे खुदा से इल्तजा करता हूँ !...आज आपकी बहुत सी पातियाँ नज़र से गुजरीं सच में एक अच्छे हुनर की मालिक हैं आप ! आपके अहसास ..आम अहसास नहीं हैं.....हुनर को बाकायदा कायम रखियेगा....अगर इहें किसी ग़ज़ल में पिरो सकें तो सोने में सुहागा रहेगा....थोड़ी म्हणत तो है पर मुझे उम्मीद है आप सच में कर सकेंगी..........
ReplyDeleteछिपा कर दर्द अपना अक्सर मुस्कराती रही,.............परवीन
बेरहम है ये दुनिया वो धीरे- धीरे बताती रही |............हर्ष महाजन
साभार
हर्ष महाजन
कल 10/अक्तूबर/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद !
वाह परी जी कमाल की भाव विभोर करने वाली रचना है। बधाई हो इतनी सुन्दर रचना के लिए। स्वयं शून्य
ReplyDeleteसीडी डॉ सीडी प्यार जब एक मुकाम तक पहुँचता है तो बहुत दिनों की दूरियां बेवफाई सी लगने लगती है फिर फितूर दिलोदिमाग इधर उधर घुमने लगता है और अनहोनी का भ्रम पल जाता है
ReplyDeleteकभी प्यार आता है कभी शिकायतें ....
ये रचना भी ठीक ऐसी ही किसी स्थिति की है.....कमाल की अनुभूति ...मनभावन
कृपया मेरे ब्लॉग तक भी आयें, अच्छा लगे तो ज्वाइन भी कीजिये सब थे उसकी मौत पर (ग़जल 2)
बहुत सहज-स्वाभाविक -सरसऔर सुन्दर !
ReplyDeleteप्यार भरी सुन्दर सहज जज्बात!
ReplyDeleteउफ्फ देखा!
ReplyDeleteमौकापरस्त शक भी
दरवाजे पर आकर
दस्तक देने लगा है
मालूम नहीं कि
कहाँ-कहाँ भटक आतें हैं
पैदल ख्याल भी मेरे ...
सकून का कहीं पर
नाम-ओ-निशान तक नहीं
सत्य ! ऐसा होता है , कम्युनिकेशन गैप शक बढ़ाता है ! व्यवहारिक शब्द
अहसास से लबालब व्यथा को अनेकों आयाम देती रचना
ReplyDeleteमिज़ाज़ों में यास (1)आ गई है हमारे
न मरनें ग़म है ,न जीने की शादी (2)
यास ---निराशा , शादी --ख़ुशी
बाहर हूँ अतएव लगातार टिप्पणी नहीं कर पा रही हूँ