तुम्हारी
बातें
मेरे खुशनुमा आलम में
जहर घोलती हैं ...
तुम्हारे सौगात
मुझे आघात देते हैं...
तुम्हारे आशीष
मानो कोई आरी
काट रही हो मुझे
कुछ इस तरह
लम्हा-लम्हा पीड़ा देते हैं ...
कहीं नहीं
देखना चाहती मैं तुम्हे
अगर उजाले नज़र है
तो मैं
अंधेरो की कायल होना
पसंद करुँगी
मेरे खुशनुमा आलम में
जहर घोलती हैं ...
तुम्हारे सौगात
मुझे आघात देते हैं...
तुम्हारे आशीष
मानो कोई आरी
काट रही हो मुझे
कुछ इस तरह
लम्हा-लम्हा पीड़ा देते हैं ...
कहीं नहीं
देखना चाहती मैं तुम्हे
अगर उजाले नज़र है
तो मैं
अंधेरो की कायल होना
पसंद करुँगी
दबे हैं अभी राख में अंगारे
ज़रा दूर रहना
ज़रा दूर रहना
क्यूंकि
और कुछ भी बदल सकता है
मगर ये नफरतो का सत्य
मेरे जाने के बाद भी जिन्दा रहेगा
और पहरेदारी करेगा
ताकि तुम्हारे कदम
उस ज़मीन को गन्दा न करें
जहाँ मेरी लाश जलायी गयी हो
क्यूंकि ये नफरत
अब मेरी रूह में उत्तर आयी है
हाँ ! हाँ ! हाँ !
इतनी किसी से
कोई मोहोब्बत क्या करेगा ?
जितनी मैंने तुमसे नफरत की है
बेतहाशा नफरत.....!!
और कुछ भी बदल सकता है
मगर ये नफरतो का सत्य
मेरे जाने के बाद भी जिन्दा रहेगा
और पहरेदारी करेगा
ताकि तुम्हारे कदम
उस ज़मीन को गन्दा न करें
जहाँ मेरी लाश जलायी गयी हो
क्यूंकि ये नफरत
अब मेरी रूह में उत्तर आयी है
हाँ ! हाँ ! हाँ !
इतनी किसी से
कोई मोहोब्बत क्या करेगा ?
जितनी मैंने तुमसे नफरत की है
बेतहाशा नफरत.....!!
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परी ऍम "श्लोक"
ब्ताहाषा नफरत में कहीं न कहीं प्रेम ही छुपा होता है ... दर्द रहता है ...
ReplyDeleteनफरत वहीं कर सकता है जो सच्चा हो।
ReplyDeleteलेकिन जब यही सफर सीधेपन तक चला जाये तो वहाँ बस प्यार होता है। शान्त और मौन ।
कुशल अभिव्यक्ति
बहुत बढोया परी जी
ReplyDeleteसादर
ताकि तुम्हारे कदम
ReplyDeleteउस ज़मीन को गन्दा न करें
जहाँ मेरी लाश जलायी गयी हो
बहुत सशक्त शब्दों का प्रयोग..... प्रभावी रचना
नफरत का एहसास
ReplyDeleteगहरा है बहुत
अंदाज़ा लगा रहा हूँ
प्यार के एहसास का
बहुत बढोया परी जी
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