Thursday, July 17, 2014

"बादल बरसे सब जन हर्षे"

भीग जाने दो
अब ये तन मेरा
बहुत मुद्दत से मिला है
मुझको संग तेरा !

मन की बात
बादल से कहा
जब धरा ने
नाचा मोर
और कूका पपीहा !

फूल पत्तिया
ख़ुशी में नहायी..
मेंढक ने तालाबों में
टर-टर मचाई...
खुले बादल तले
मैं थी आई...
झूला सावन का
नीम की टहनियों पे
डालकर झूल आई !

धान ने डाला खेतो में डेरा..
हर्षाया किसान का भी जीयरा..
लगा था शाम हो आई है..
काले बादल में छिपा था
सूरज का उजेरा !

बाग़-बगीचे सब हरियाए..
प्यासे पंछी बड़ी राहत पाये..

रिमझिम खूब बरसाया है पानी
मेरी बिटिया भी खूब नहानी
देर आये मगर फिर भी आये तो
सुनो! बादल
तुम्हारी बड़ी मेहरबानी!! 


-------------परी ऍम 'श्लोक'

11 comments:

  1. बहुत ही सुन्दर भाव हैं कविता के डायरेक्ट दिल से :)

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  3. आपकी लिखी रचना शनिवार 19 जुलाई 2014 को लिंक की जाएगी...............
    http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  4. धान ने डाला खेतो में डेरा..
    हर्षाया किसान का भी जीयरा..
    लगा था शाम हो आई है..
    काले बादल में छिपा था
    सूरज का उजेरा !

    बाग़-बगीचे सब हरियाए..
    प्यासे पंछी बड़ी राहत पाये..

    रिमझिम खूब बरसाया है पानी
    मेरी बिटिया भी खूब नहानी
    देर आये मगर फिर भी आये तो
    सुनो! बादल
    तुम्हारी बड़ी मेहरबानी!!

    बहुत सुन्दर

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    1. Yogi ji padhne aur hosala badhaane ka shukriya

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  5. बहुत सुन्दर ।

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